Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्नकीर्ति एव कुमुद चन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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राय देशाख:
प्रास्यरे इम कीधु माहरा नेमजी पण समझे किम जाय । तोरण बढीने पाया बलतां लोक हसारत थाय ||मांचली।। १ ॥ अझने पास हृती मतिमोटी, नैमिकुमार परणीये । मास अधमास इहां राखीने, मन गमतु' ले करीस्मे ||प्रा०॥ २ ॥ श्रापासे अति उची मेडी, पालि छे हाट श्रेणी । ते उपरि थी नगर तमासो, जो इस्ये जालिये हेरी ॥ ॥ ३ - बोली टोली टोल करता गीत साहली माये । हास विनोद कथा रस कहे तां, दिन जातो न जगाइ प्रा०॥ ४ ॥ प्रावो प्रावो रे मोहन मंदिर माहरे, रोझ मन माहरु । घालेक प्रांखहली मचकावत सूजाये छे ताहरु -प्रा० ५ ॥ तह्मने सू वलि वलि बीनबीइ तम्हे छो अन्तरयामी । रहो रहो रसिक बलो तुहा पाछा, कुमुदचन्द्र ना स्वामी या ६ ॥
राग धन्यासी :
में तो नरभव बाधि गमायो । न कीयो तप जप व्रत विधि मुन्दर ।
काम भलो न कमायो ।.मैं०॥ १ ॥ विकट लोभ त कपट कट करी ।
निपट विष लपटायो। विटल कुटिल शठ संगति बेठो।
साधु निकट विघटायो 11मैं तो०॥ २ ॥ कृपण भयो कसु दान न दीनो।
दिन दिन दाम मिलायो ।। जब जोवन जंजाल पड्यो तब |
पर त्रिया तनु चित लायो । मैं तो०॥ ३ ॥ अन्त समे कोउ संग न प्रावत ।
झूठिहि पाप लगायो । कुमुदचन्द्र कहे चूक परी मोहि ।
प्रभु पद जस नहीं गायो ।म तोमा ४ ।।