Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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राग बन्यासी :
प्रभु मेरे तुम कु एसी न चहीये || सघन विन घेरत सेवक कु ।
विधन हरन सुख करन सबनिकु ।
( १६ )
हम तो हाथ विकाने
अशरण शरण अवन्धु बन्धु ।
राग परयासी :
मौन धरी किच रहीये ॥ प्रभु || १ ||
चित चिन्तामनि कहीये ॥
तो फुनि कुमुदचन्द्र कहे शरणागति की ।
राग श्री राग :
कृपासिंधु को बिरद निवद्दीये ॥ प्रभु || २ || प्रभु के 4
अब जो करो सोई सहिये ||
( २० )
आजु सबनी मिडू बड़भागी।
लोडण पास पाय परसन कु मन मेरो अनुरागी ॥ श्राजु ॥ १ ॥
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पद एवं गीत
राग बसाउ :
भुसम्म जु गहीये ॥ | प्रभु || ३ ||
वामा नन्दन बृजिनि विहडन जगदानन्दन जिनवर ।
जनम जरा मरणादि निवारण, कारण सुख को सुन्दर || प्राजु० ॥ २ ॥
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नीलबरल सुर नर मन रंजन. भव भंजन भगवन्त ।
कुमुदचन्द्र कहे देव देवनीको, पास भजहु सब संत ॥ श्राजु || ३ |
( २१ )
वन्दे हूं शीतल चरणं ॥
सुरनर किन्नर गीत गुणावली, मतुलं रूपं भव भयहरणं || बन्दे || १ | निज नख सुखमा चित द्विजपति चय, मुदित मुनि निश्चित शरणं । जन्म जरा मरणादि निवारण
नत कुशुदचंद्र श्री सुख करणं ॥ वन्दे ० || २ |
( २२ )
अवसर श्राजू हेरे वेदान पुण्य कोई कीजे ।
मानव भव लाहो लीजे ॥ श्र० ॥ १ ॥