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________________ १८६ राग बन्यासी : प्रभु मेरे तुम कु एसी न चहीये || सघन विन घेरत सेवक कु । विधन हरन सुख करन सबनिकु । ( १६ ) हम तो हाथ विकाने अशरण शरण अवन्धु बन्धु । राग परयासी : मौन धरी किच रहीये ॥ प्रभु || १ || चित चिन्तामनि कहीये ॥ तो फुनि कुमुदचन्द्र कहे शरणागति की । राग श्री राग : कृपासिंधु को बिरद निवद्दीये ॥ प्रभु || २ || प्रभु के 4 अब जो करो सोई सहिये || ( २० ) आजु सबनी मिडू बड़भागी। लोडण पास पाय परसन कु मन मेरो अनुरागी ॥ श्राजु ॥ १ ॥ J पद एवं गीत राग बसाउ : भुसम्म जु गहीये ॥ | प्रभु || ३ || वामा नन्दन बृजिनि विहडन जगदानन्दन जिनवर । जनम जरा मरणादि निवारण, कारण सुख को सुन्दर || प्राजु० ॥ २ ॥ J नीलबरल सुर नर मन रंजन. भव भंजन भगवन्त । कुमुदचन्द्र कहे देव देवनीको, पास भजहु सब संत ॥ श्राजु || ३ | ( २१ ) वन्दे हूं शीतल चरणं ॥ सुरनर किन्नर गीत गुणावली, मतुलं रूपं भव भयहरणं || बन्दे || १ | निज नख सुखमा चित द्विजपति चय, मुदित मुनि निश्चित शरणं । जन्म जरा मरणादि निवारण नत कुशुदचंद्र श्री सुख करणं ॥ वन्दे ० || २ | ( २२ ) अवसर श्राजू हेरे वेदान पुण्य कोई कीजे । मानव भव लाहो लीजे ॥ श्र० ॥ १ ॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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