SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टारक रत्नकीर्ति एव कुमुद चन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १५ राय देशाख: प्रास्यरे इम कीधु माहरा नेमजी पण समझे किम जाय । तोरण बढीने पाया बलतां लोक हसारत थाय ||मांचली।। १ ॥ अझने पास हृती मतिमोटी, नैमिकुमार परणीये । मास अधमास इहां राखीने, मन गमतु' ले करीस्मे ||प्रा०॥ २ ॥ श्रापासे अति उची मेडी, पालि छे हाट श्रेणी । ते उपरि थी नगर तमासो, जो इस्ये जालिये हेरी ॥ ॥ ३ - बोली टोली टोल करता गीत साहली माये । हास विनोद कथा रस कहे तां, दिन जातो न जगाइ प्रा०॥ ४ ॥ प्रावो प्रावो रे मोहन मंदिर माहरे, रोझ मन माहरु । घालेक प्रांखहली मचकावत सूजाये छे ताहरु -प्रा० ५ ॥ तह्मने सू वलि वलि बीनबीइ तम्हे छो अन्तरयामी । रहो रहो रसिक बलो तुहा पाछा, कुमुदचन्द्र ना स्वामी या ६ ॥ राग धन्यासी : में तो नरभव बाधि गमायो । न कीयो तप जप व्रत विधि मुन्दर । काम भलो न कमायो ।.मैं०॥ १ ॥ विकट लोभ त कपट कट करी । निपट विष लपटायो। विटल कुटिल शठ संगति बेठो। साधु निकट विघटायो 11मैं तो०॥ २ ॥ कृपण भयो कसु दान न दीनो। दिन दिन दाम मिलायो ।। जब जोवन जंजाल पड्यो तब | पर त्रिया तनु चित लायो । मैं तो०॥ ३ ॥ अन्त समे कोउ संग न प्रावत । झूठिहि पाप लगायो । कुमुदचन्द्र कहे चूक परी मोहि । प्रभु पद जस नहीं गायो ।म तोमा ४ ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy