Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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पद एवं गीत
राग गुज्जरी :
[ २८) म करीस परनारी नो संग ।। टेको । हाव भाव करे ते खोटो जेह वो रंग पतंग ।। म० करीस ।। १ ।। पेहेलु मन संताप चटपटी, सोका संताप ने प्रावे । जेम लागो होये भूत ममता, ते मते चित' ममावे ।। म० ॥ २ ॥ भूखत रस नवि लागे तेहाथी, अल उदक नवि भावे ।। न रुच यात विनोद कथा रस, नहि निसि निद्रा प्रावे ।। म० ॥ ३ ॥ लंपट लोक कही बोलावे, सह सज्जन पिसाबे । माथे पाल' चढे पतजाय, लोकह सारथ पाते ।। म. ३ ।। राज दण्ड धन हारण विगुचणा, नरक माहे दुख कारी।
कुमुद चन्द्र कहे करी वीमासण, त जो चतुर परनारी || मंकरीस ॥ ५ ॥ राग सारंग :
नाथ अनायनी कु कछु दीजे । विरद संभारी छारीहउ मन ति, काहे न जग जस लीजे ।। नाथ ।। १ ।। तुम तो दीनदयाल ही निवाज, कीयो हूं मानुष गुग्ण अब न गणीजे ।। घ्याल वाल प्रतिपाल सविषतरु, सो नहीं पाप हसीजे || नाथ ॥२॥ में तो सोई जोता दीन हूंतो आ दिन को न टूई जे 1 जो तुम जानत उस भयो हे, वाधि वाजार बेचीजे ॥ ३ ॥ मेरे तो जीवन धन सबहु महि, नाम तिहारे जीजे । कहत कुमुदचन्द्र चरण सरण मोहि जे मात्र सो कीजे ।। ४ ।।
राग सारंग:
जो तुम्ह दीन दयात कहावत ।। हमसी अनाथ नि हीन दीन कु काहे न नाथ नीवाजन || जो० ॥ १ ॥ सुर नर किंनर असुर विद्याधर, जब मुनि जन अभ गावत। देव महीरुह कामधेनु ने, अधिक जपत सच पावत ।। जी ।। २ ।। चन्द चकोर जलद ज्यु सारंग मीन मलिलज ध्यावत । कहित मुदपति पावन तुहि, त हिरिदे मोहि भावत ।। जो० ॥ ३ ।।
(३१ ) मुनिसुनत्त गीत मुरत मोहन वेलडी रे, दर्सण पाप पलाय । मुख बीछे दृग्व विसरे रे, सवे छ मधे सुरासुर पाय ।