Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
भट्टारक रलकी लि एवं कुगुर : व्यतित्व एव कृतित्व
रूपे मदन समान मनोहर, चूद्ध अभय कुमार । सीले सुदर्शन रामान सोहे गोतम सम अबतार रे ।।१०।।
एक दिन भट्टारक प्रशचन्द्र ने अपनी प्रवचन सभा में हपित होकर कहा कि सहेजसागर के सामान कोई मृग नहीं है। वहीं परथ होने योग्य है । यह यागमों का सार भी जानता है ।
इसके पश्चात संघलि प्रेमजी, हीरजी, गाजी, नेमीदास हुबड़ वंशा शिरोमणी बाधजी, गंधजी, रामलीनयन, गागजी जोपंधर वर्धमान अदि सभी श्रीपुर से आये और चतुविध संघ के समक्ष यह महोत्सव का आयोजन किया । संघ सहित थी जगजीवन राणा भी पाट महोत्सव में पाये तथा दक्षिण से धर्मभूषण भी ससंघ सम्मिलित हो । गुभ नहीं देखकर जिन पूजा की गई । शान्ति होम विधान सम्पन्न हुमा। जलयात्रा एवं जीणमवार हुई और बेटा सुदी प्रतिपक्षा के दिन जय जयका र दर की थी। शुभारन्द्र को पट्टर विराजमान कर दिया । सूरि मन्त्र धर्मभूषण ने दिया ।
-- - .---...-. .. 1. एकदा प्रतिमानन्द शेले, अमयच व जयकार ।
सुरगयो राह सज्जन मम रंगे, पाट लगो सुविचार रे ॥१॥ सहेज़ सिंधु सम नहीं को यतिवर, जगमा जारगो सार। पाट योग सुगर एहने, आपयो गच्छ नो भार रे ।।२।। सधपति प्रेमसी हीरजी रे, सहेर वंश श्रृंगार । एकलमल्ल आवई अति उदयो, रत्नजी गुरुप भण्डार रे ॥३॥ नमीदास निरुपम मर सोहे प्रखई प्रवाई बोर । हुम्बड़ श शृंगार शिरोमरिष बाघजो फंध पीर रे ॥४।। रामजीनन्दन गांगाजी रे, जीचंधर वर्षामान । इत्यादिक सघपति ए साते, पावा श्रीपुर गांप रे ।।।। पाट महाशय मायो रगे' सघ चतुर्विध लाया। संघति श्री जगदीना राणो. सघ सहित ते प्राच्या ।६।। दशरण देश नो गछाति रे, धर्मभूषण तेजाका । अति आबर साधे साहमोकरी ने तप घराध्या रे ॥७।। शुभ महरत जोई जिन पूजा शांतिक होम विधान । जमरा गर पुगते जल जात्रा प्राये श्रीफल पानं रे ॥८॥
शुभचन्द्र इमची