Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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ब्रह्म जयंसागर
{११) यशोधरगीत (१२) पंच कल्याणक गीत
उक्त रचनाओं का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है(१) बूनको गीत
इसका दूसरा नाम चारित्र चाड़ी भी दिया हया है। राजमती नेमिनाथ हो चारित्र बनड़ी योदने के लिये मांग रही है। नेमि गिरनार के भूषण है। वहां पद जीवों का निवारा है। चारों ओर सम्यकत्व रुपी हरियाली है 1 नीला रंग बहुत सुन्दर लगता है जिस पर देवता भी भोहित हो जाते हैं। मूल गुणों का स्वच्छ रंग बन गया है। जिनवाणी का उसमें रस दिया है । तप में वह चूनडी सूखती हैं। उससे रग चटकता है छूटता नहीं । पांच महाव्रत कमानों के समान रंग लाने वाले हैं। पांच समितियों से नहीं मिटने वाला नीला वर्ग चह जाता है। बारौसी लाख जो उत्तर गए है उससे बह चुनरी सुन्दर लगती हैं । तीन मतियां से वह चुनड़ी नीली, पाली से प्रासावित होकर मन मोह रही है। हा प्रकार की चुनड़ी को प्रोडकर राजुल स्वर्ग चली गयी जहां वह खग को सुब भोग रही है । इस प्रकार की चारित्र चनड़ी जो भी लिंगा से मन वांछित सखों की प्राप्ति होगी नोर अन्त में संसार सागर को पार करेगा ।
चूनडी में १६ पद्य हैं । मह्म जयसागर ने इसमें रत्नकीति का स्मरण किया है। उसका अन्तिम पद्म निम्न प्रकार हैं--
सुरि रत्नकीरति जयकारी, शुभ धर्म शणि गुण धारी । नर नारी चुनड़ी गावे, ब्रह्म जयसागर कहे भावे ।। १६ ।।
२. संधपत्ति श्री मल्लिदासनी मेल
यह एक ऐतिहासिक कृति है जिसमे महिलस द्वारा प्रायोजित पचकल्याणका प्रतिष्ठा का वर्णन किया गया है। पंचकल्याण प्रतिाठा बलसाड नगर में हुई थी। वे हूँ बर वा के शिरोमणि थे । उनको परिन का नाम राजबाई था । भल्लिदाम का पुत्र मोहन का पति था। वह राजा श्रमिक के समान जिन भक्ति में श्रोता था । प्रतिदिन प्रशर सम्पत्ति का दान करता रहता था। भट्टारक रत' वह भक्त था इसलिये उन्हीं के उपदेश से उसने पंचकल्याणक प्रति मिनाथ
. के है जिनसे पता घर १. धूमकी की पूरी प्रति प्रागे दो गयी है । ऋषभदेवगीत में "धूसे वन