Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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बारहमासा
मापापरणे अवसर को बरससे रयु मेह, करुएरा कर कृपा करो जी दयावंत दयाल | आमला मूको सामना श्रावण करी संभाल ॥ ६ ॥
भाद्रपद मास -
भाद्रबड़े भरि जलथल महीयल मेष रे। में पर रे नेमि जिम हुम बिना किम रह रे ॥ प्रा हरी श्र भूमि परि इ गोप प्रानन्द रे। मानन्द रे सोमा तेहनी सी कह रे ।। ज्यम ज्यम जलहार बरसे बहुरंग रे । अंग रे प्रनंग दहे सुरिए सहचरी रे ।। मा दीनथइने वचन बह भाषे इम । अपराध पाखे का पीउ परहरी रे ॥ ७ ॥
नोटक
पथरी का प्रपराध पामें पचक भाषे हम । दिवस दोहिले नोगमु रे त्यषी जाये किम ।। प्रारद करती दुख धरती रडली धकवइ राति | उदय पाये एकठो तोराननी सी बात ।। सुरिण सखि मम कांई न सुझे जे काम शरीर। निज नाथ केरो नेह साले नयन टलया नीर ।। रमे कुरंग कुरंगीणी तरंगोणी ने तीर । हाव भाव विलास निरस्त्री नयन टलया नीर ॥ अवनीय उपरि अंब पूरा पूरया सुरचाप । भादव भरतार पाखि सेजतलाई ताप ।। ८ ॥
मावनि मास
प्रा मासो प्रासा नेमि जिरणंद रे। काई चंदरे उदयो अयनी नीर भलो रे ।। मा उज्जल तृण जल अंबुज प्राकाश रे । मास रे सरद सजनी सोह जलो रे ।। सया सुत विनसो कर शृगार रे। मुगति नो हार हृदय मुझ दहे रे ।।