SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ बारहमासा मापापरणे अवसर को बरससे रयु मेह, करुएरा कर कृपा करो जी दयावंत दयाल | आमला मूको सामना श्रावण करी संभाल ॥ ६ ॥ भाद्रपद मास - भाद्रबड़े भरि जलथल महीयल मेष रे। में पर रे नेमि जिम हुम बिना किम रह रे ॥ प्रा हरी श्र भूमि परि इ गोप प्रानन्द रे। मानन्द रे सोमा तेहनी सी कह रे ।। ज्यम ज्यम जलहार बरसे बहुरंग रे । अंग रे प्रनंग दहे सुरिए सहचरी रे ।। मा दीनथइने वचन बह भाषे इम । अपराध पाखे का पीउ परहरी रे ॥ ७ ॥ नोटक पथरी का प्रपराध पामें पचक भाषे हम । दिवस दोहिले नोगमु रे त्यषी जाये किम ।। प्रारद करती दुख धरती रडली धकवइ राति | उदय पाये एकठो तोराननी सी बात ।। सुरिण सखि मम कांई न सुझे जे काम शरीर। निज नाथ केरो नेह साले नयन टलया नीर ।। रमे कुरंग कुरंगीणी तरंगोणी ने तीर । हाव भाव विलास निरस्त्री नयन टलया नीर ॥ अवनीय उपरि अंब पूरा पूरया सुरचाप । भादव भरतार पाखि सेजतलाई ताप ।। ८ ॥ मावनि मास प्रा मासो प्रासा नेमि जिरणंद रे। काई चंदरे उदयो अयनी नीर भलो रे ।। मा उज्जल तृण जल अंबुज प्राकाश रे । मास रे सरद सजनी सोह जलो रे ।। सया सुत विनसो कर शृगार रे। मुगति नो हार हृदय मुझ दहे रे ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy