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________________ भट्टारक रत्नवीहि एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व लिन भावाहमास आभर प्राषाढ मावयो ए पर रे । काई घरे रे नाह नहीं हूं किम रहुँ रे ।। श्रा जल थल मही अन मेहन मंडाण रे । सजांसा रे न सम्भारे दुख केहनें कह रे ।। प्रागड अडे गगने गोहे रो अपार रे। काई धार रे न खंचे उन्नत माहालो रे ।। आजिम जिम तिम रीति मरासु माहाले रे । काई साले तिम तिम नेमनो नेहलोरे ॥ ३॥ -.. + त्रोटक तिम तिम नाहनो नेह साले अाषाढिं मगात । दादुर बोले प्राण तोले वरसाले विशाल ।। दिवस अंधारी रालडी बलि चाट घाटे नीर । वापीयडो पीउ पीउ बोले किम घर मन धीर ।। तर तपी साखा करे भाषा सावजां सोहत । रितुकाल भोर कला करी, मयूरी मन मोहंत ।। आज सखी प्रगाल आव्यो उन्हई ने मेह । झव झवक झबके दीजली किम सहे कोमल दह - प्रापो पणा पीउ ने पास, करे कामिनी लाड । किम रहुं हु' एकली रे प्रावयो प्राषाढ़ ॥ ४ ॥ सावन मास-. आषाड अनुक्रमें श्रावण मास रे । फाई पास रे पास फर हूँतम सरणी रे ॥ मा अनुचरी जांशी श्रावयो एक बार रे। प्राशर रे नेमि जिन धम त्रिभुवन धणी रे ॥ ५ ॥ जोटक - त्रिभुवन घरी तम तणी जागी प्राव यो एक बार । पछे नो हे अवसर ब्रह्म तणो, जोवम नो भागार ।। अवसर की प्रापरणो पछे कस्यो उथे बन्द । तिम तुझ विना निज नाथ मुझने सोहोये न प्रानन्द ।। मालती मकरद चूको, कस्यु करे करी रे । मानसर मराल चुको, किम घरे मन धीर ।। प्रसवर गये सज्जन मिले पछे किम टने दुस्ख देह ।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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