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________________ बारहमासी उदधि सुत। सुत गोर नमी, प्रणमी अभचन्द पाय ! मोनियो गोते नरम, ग ति || ६६ ॥ तेह पद पंकज मन धरी; रत्नकीरति गुण गाय । गाये सूरो ए मांहत, वसन्त रिते सुखि थाय ॥ ६७ ।। नेमि विलास उल्हासस्यु', जे गास्ये नरनारि । रत्नवीरति सूरीवर कहें, लहे सौख्य अपार ।। ६८ ॥ हांसोट मांहि रचना रची; फाग राग केदार । श्री जिन जुग धन जारणीये; सारदा बर दाशार ॥ ६६ ।। इति श्री रत्नकीति विरचित नेमिनाथ फाग समाप्त ।' (२) बारहमासा ज्येष्ठ मास राग प्रासावरी प्रा ज्येष्ट मासे जग जलहर नोउमाहरे । फाई वाय रे वाय विरही किम रहे रे ।। पाए रते आरत उपजे अंग रे । अनंग रे सन्तापे दुख केहे ने कहे रे ॥ १ ॥ मोडक केहनें कहे किम रहे कांमिनी प्रारति प्रमाल । चारु चन्दन चीर चिते, माल जाणे व्याल । कपूर केसर केलि कम कवडा उपाय । कमल दल' छाटणा वन रिपु जाणे बाय || भावे नहीं भोजन भूपण करणं केरा भाम । परीनगमे पान नीकों रलि करें कर भाय ।। गिरिनारिकेरो गिरितपे, सखि जेष्ठ मास विसेष । दुःसह दीन दोहिला लागे कोमला सलेषि ॥२॥ १. गुटका, यशकीति सरस्वती भवन ऋषभदेव, पत्र संख्या १२७ से १३२ तक
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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