Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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पद एवं गीत
नीठर न होई ए लाल, बलिहू नेन विसाल ।
केसेरी तस दयाल भसे मलेरी ॥ रतनकीरति प्रभु तुम बिना राजुल ।
यों उदास अहे क्यु रहे रीं ॥ ३ ॥
राग केवारी:
२२) सुनो मेरी सयनी धन्य या रयनीरे ।
पीयु धरि आवे तो श्रीव सुख पावे रे ॥ १ ॥ सुनि रे विधाता बन्द सन्तापी रे,
विरहिनी बध थे सपेद हुआ पापी रे ॥ २ ॥ सुन रे मनमथ बतियां एक मुझरे,
पथिक बधू वध थे देहे हानि मुझरे ॥ ३ ॥ सुन रे जलघर करत का माजरे.
मे पक भई तुझत न तमजू न लांज रे ॥ ४ ॥ सुन रे मेरे मीता गोद बिठाउ रे,
__ सारंग वचन थे दुख गमारे ॥ ५ ॥ सुनो मेरा कंता नहीं मुझ दोसरे,
में क्या कोला इतना कहा रोस रे । ६ ॥ अगाधर कर सम चन्दन तन लायां रे,
कमर दरीवर दुख न गमाया रे ॥ ७ ॥ वियोग हतासन दहे मुझ देहरे,
बीनती चरन परी करु धरी नेहरे !! ८ ॥ रे मन बिजोगे भोजन न भावे रे,
उदक हालाहल राग न सुहाये रे ॥१॥ पीउ पावन की को देवे बघाई रे,
रतन मोतिन का हार देख भाइ रे । १० ॥ रतनकीरति पीमा तोरन जब आया रे,
सजनी राबे मिलि गुन गापा रे ।। ११ ।।
राग वेशाष :
रथडो नीहासतीरे, पूद्धति सहे साबन नी बाट । कहो रे कंत नेरे, मुझ नेमें हेले ते स्यामादि ।।