Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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नेमिश्वर हमची
वाडि भरी राख्या ए स्याहने, पूछु ते जग धीशों। ता गोखनें कारगि स्वामी, ते सघाला मारीसेरे || ६८ ।। तहन' वचन सूरणी ने स्वामि, मन माहि कल मलिया।
धिन धिग परणे व ने माथे नेमिजी पाछा वलिया रे ॥ ६६ ॥ मेमिनाथ का राग्य
मन माहि बेराग धरीने, मूक्यों सह संसार । नेमिकुयर संयम लेवाने, जई चडिया गिरनारि रे ।। ७० ॥ सहसा वन मां संयम लीधू, की प्रातम काज । त्यारि तप कल्याणक कोषु प्राध्या ते सुरराज रे ।। ७१ ॥ कोलाहल बाहिर सामलिने, सुसु करती रही । प्रछी सजनी वल तु बोली, नेमि गया गिरि रूठी रे ।। ७२ ।। तेरे बचने पुहवीतलि, लोटे जंग अछाडे ।
हेलताडे चोली फाडे, रहती गढि बाडेरे ।। ७३ ।। राजुल का बिलाप
रोसें हार एकाबल प्रोडे, चटमें चूडी फोडे | कंकरण मोडे मन मचकोडे, प्रापण पूव खोडेरे ।। ७४ ।। के में प्रगल पाणी नाल्यां, के तर चोडी डाल । साधु तशी निंद्या में फीधी, जूठा दीधा माल रे ।। ७५ ॥ के में रजनी. भोजन कीधा,के में उबर खाधा । के में जीव दया नहीं पाली, बन माहिं दव दीघा रे ।। ७६ ।। के में बहुयर बाल विछोहा, के में परधन हरियां । कंद मूलना' बख्यण करियां कि मे व्रत नहीं धरिया ॥ ७७ ।। के में कूड़ा लेख! कीघा, खोटी माया मांडी । छाना पाप करयां ते माटे, नेमि गया मझ छाडी रे ॥ ७८ ।। इम कहेती लडपडती पटत्ती, प्रडवलती वल वलसी । प्रग बलू रे मनस्यु' भूरे, प्राखि प्रांसू ढलती रे ॥ ७९ ॥ लावी नहीं बोले बाला रातिपण नवि सूये । मनुस्य भूख तरस नहीं वेदे, जिन जिन जपति रोवे ।। ८० ।। फिम करी दिननि गमस्युपीजडा तुम पाखि कम करस्यु । जिम जल पाखे माछल डी तिम विलखी थइने मस्यु रे ।। १ ।। वाडि बिना जिम मेलि न सोहे, अ बिना जिम वाणी । पंडित विन जिम सभा न सोहे, वामल बिना जिम पाणी रे ।। २ ।।