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________________ ४० पद एवं गीत नीठर न होई ए लाल, बलिहू नेन विसाल । केसेरी तस दयाल भसे मलेरी ॥ रतनकीरति प्रभु तुम बिना राजुल । यों उदास अहे क्यु रहे रीं ॥ ३ ॥ राग केवारी: २२) सुनो मेरी सयनी धन्य या रयनीरे । पीयु धरि आवे तो श्रीव सुख पावे रे ॥ १ ॥ सुनि रे विधाता बन्द सन्तापी रे, विरहिनी बध थे सपेद हुआ पापी रे ॥ २ ॥ सुन रे मनमथ बतियां एक मुझरे, पथिक बधू वध थे देहे हानि मुझरे ॥ ३ ॥ सुन रे जलघर करत का माजरे. मे पक भई तुझत न तमजू न लांज रे ॥ ४ ॥ सुन रे मेरे मीता गोद बिठाउ रे, __ सारंग वचन थे दुख गमारे ॥ ५ ॥ सुनो मेरा कंता नहीं मुझ दोसरे, में क्या कोला इतना कहा रोस रे । ६ ॥ अगाधर कर सम चन्दन तन लायां रे, कमर दरीवर दुख न गमाया रे ॥ ७ ॥ वियोग हतासन दहे मुझ देहरे, बीनती चरन परी करु धरी नेहरे !! ८ ॥ रे मन बिजोगे भोजन न भावे रे, उदक हालाहल राग न सुहाये रे ॥१॥ पीउ पावन की को देवे बघाई रे, रतन मोतिन का हार देख भाइ रे । १० ॥ रतनकीरति पीमा तोरन जब आया रे, सजनी राबे मिलि गुन गापा रे ।। ११ ।। राग वेशाष : रथडो नीहासतीरे, पूद्धति सहे साबन नी बाट । कहो रे कंत नेरे, मुझ नेमें हेले ते स्यामादि ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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