SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टारक रनकीति एवं कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व राम प्रसाजरी : ( १६ १ श्राजू मलि ग्राये नेम नो बाउरी ॥ राग प्रसाउरी ; राग केवारो : चंद्रवदनी मृग नयणी हिलि मिलि । या विधि गावत राम असावरी ॥ १ ॥ मोन मूरत सूरत बनी सुन्दर । पुरंदर पाछे करत नो छाउरी ॥ जय जय शब्द आनन्द चन्द सूर संग या विधि आये चंग हलधर भाउरी ॥ २ ॥ किरीट कुण्डल छवि रवि ससि सोडून । मोहन भाये मण्डप पाउरी ॥ रतनकीरति प्रभू पसूय देखी फिरे । बली बन्धोका न करज्यो चरन पर परी करु री राजीमती युवती भई बाजरी || ३ || (7) अपनो || नोछावरी । लघु वय कहां तप जपनो ॥ १ ॥ रह्यो न परत छिन् निमेष पलक घरी । वाच सांच सम्भारो अपनी सोवत देखत सपनो ॥ रतनकीरति प्रभु जयनो ॥ २ ॥ ( २१ ) कहाँ मण्डन कर कंजरा नेन भम', होउ रे वेरागन नेम की चेरी ॥ सीस न मंजन देउ मांग मोती न लेउं । अब पोर हू तेरे गुमनी बेरी ।। १ ।। कोई सु बोल्यो न भावे, जीया में जु एसी भावे । नहीं गमे तात मात न मेरी । आली को कह्यो न करे बाबरी सी होई फिरें । चकित कुरंगिनी यु सर धेरी ॥ २ ॥ १३६
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy