SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ पद एवं गी सारंग धवणे शामली वाले नेम दयाल जी। सह सारंग केरो ने हीतकर घाल्यो रथ गुणाल ॥ स० ।। ४ ।। सारंग नी वारी सारंग सपाध्यो सारंग गज ए रहावे जी । अभयनन्द पद पंजक प्रणामी रत्नकीरति गुण गावे ॥५॥ राग मारपी: सुए रे नेमि सामलीया साहेब, क्यों बन छोरी जाय । कुरण काहने रच्यो क्योंन जाणो काहे न रथ फैरायरे । जीवन जीवन सुण मेरी अरदास, हुं होउंगी वोरी दास । तू पूरण मोरी पास मोरी पास रे ।। जी ॥१॥ तात भात अब मात न मोरी, तेरी चेरी होई पाउ । सेवते वेव ते दया न होये सो सो:: हायः 'गा.. jी | | यु बील बील ते दवा न पावे, काहाये क्यों कृपावंत । रतनकीरति प्रभु परम दयालु, पास छो राजंतु रे ॥ जी ॥ ३ ॥ राग सारंग: (१७) सारंग सजी सारंग पर पाये। सारंग बदनी, सारंग सदनी, सारंग रागनी गावे ॥१॥ सारंग सम शीर की बनाई, सारंग अपनो लजायो। या छबी अधिक मापोरी दुपारी सारंग सबद सुनावे ॥२॥ सारंग लंकी सारंग थे, सारंग अंग न भावे । सारंग छोरति सारंग संग दो रति रतनकीरति गुणा गाये ॥ ३ ॥ श्री राग : थी राग गावत सुर किनरी ॥ करत थेई घेई नेम कि यागि, सुधांग सुगीत देवत ममरी ॥१॥ ताल पखावज देणू नोकि वाजत, पृथक पृथक बनावत सुन्दरी । सारंग आगि सारंग नाचत देखत सुन्दरी धवल वरी ॥ २ ॥ रथ वो शिवया मुत प्राबे, बघावे मानिनी मोती भरी ॥ रत्नकीति नभू त्रिभुवन बंदिस्त सोहे ताकि राम हरी ।। ३॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy