SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३७ १३७ भट्टारक रत्नशीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व तन मन धन योवन नहीं मावत । रजनी न भावत भोर ।। रतनफीरति प्रभु बगे मिला। तुम मेरे मन के बोर ।। ३ ।। राग केवारी : झीलंते कहा कर्यो यदुनाथ । पही रुक्रमणि सत्यभामा श्रीरकत मिली सबु साथ ॥ १ ॥ छिरकतें बदन छपात इतउत, व्याहान को दीयो हाथ । रतनी रति प्रभु कैसे सीधारे मुगति बधू के पाय ॥ २ ।। राग केवारो : सरद की रपनि सुन्दर सोहाल' । राका शशत्रर जारत या तन, जनक सुता बिन भात ।। १ ।। अब याके गुन प्रावत जीया में, बारिज बारी बात । दिल बिदर की जानत सीमा, गुपत मते की बात ।। २ । या विन या तन सहो न जावत, दुःसह मदन को पात | रतनकीरति कहें बिरह सीता के, रघुपति रह्यो न जात ।। ३ ।। रग केदारो : (१४) सुन्दरी सकल सिंमार करे गोरी । कनक वदन कंचूकी कसी तनि, पेनीले प्रादि नर पटोरी ।। १ ।। नीरखती नेह भरि नेमनो साहकु र बेले आयेंसंग हलधर जोरी। रतनकीरति प्रभु गिरखी सारंग वेग गिरी गये मान मरोरी ।। २ ।। सुन्दरी ॥ राग मामणी : (१५) सारंग उपर सारंग साहे सारंग व्यासार जी। से तल पर सारंग एक सुन्दर एवी राजनार॥ तरुणी तेजे मोहे जी ।। १ ।। सारंग सारंग' हरी मोहे सारंग माहे। सारंग मुकी सारंग पति ने जोवे ।। तरु० ॥ २ ॥ सारंग करीने सारंग बैठो कोटे सारंग समान जी । सारंग उपर थी सारंग उतरी सारंग सु करे मन ।। त० ।।३।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy