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भरत बाहुबली छन्द
राग केदारो
नेम तुम आयो परिय घरे । एक रनि रही प्रात पियारे, बोहोरी चारित घरे ॥ १॥ नेम ॥ समुद्र विजयनंदन नृप तु ही विन मनमथ मोही न रे । चन्दन चीर चाम इन्द्रो दाहत अंग धरे ॥ २ ॥ नेम ॥ मिलती छारि चल मन मोहन उज्जल गिनि' जा चरे । रतन कीरति कहे मुगति सिधारे अपनो काज करे ॥ ३ ॥ नेम ।।
राग फेनारो
राम कहे प्रवर जया मोही भारी ॥ दश कमल सु शीतन मीता साइत देह धारी ॥ १॥ नमन कमल युगल कर पदुमिनी गयन के इदु अपारी । रतनकीरति राम पीर तजु पलक जुग अनुवारी ॥२॥
राय केदारो
दशानन, कोनती कहत होइ दास । तोही बिरहानर जरत या तन, मन मोह प्राउ दास ॥१॥ सूर तो सपन दश न्यार निवारे ते तोही अंग निबास । चन्द बदन कु प्रधर सुधा कु पनवंत फेलास ॥ २॥ लावनि काम दृघा श्रीकांत रंभा रूप के पास ।। गज गमनी जु हर ट्रीगन कु धनुषं भमे कंबु पास ।। ३ ।। कठिन री हो कहा करत कटियाई या मोही पूरन पास । रतनकीरति कहे सीया कारण काहे नसावत सास ॥ ४ ॥
राग वारो
वरज्यो न माने नयन निठोर । सुमिरि सुमिरी गुन भये सजल धन,
उमंगी चले मति फोर ॥ १॥ वरज्यो ।। चंचल 'पपल' रहत नहीं रोके,
ग मानत जु निहोर ।। नित उठि चाहत गिरि को मारग,
जेही विधि चन्द्र नको ॥ २ ।। वरज्यो ।।