Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१२९
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आ रे नाथ साथ ले को कहे वरणे रे । नयर रे काजल सखि मुझ नवि रहे रे ।। ९ ॥
प्रोटक
नवि रहे काजल नयण माहरे प्राराता हरे प्रेम । उडपति केरा किरणवाले शरट कालि एम || उह्मा भी किम रह इधरी वली करी तुमस्तुप्रीति ।। वाही ने वन माहि जायें लोक मांसी रीत ।। सुरिण स्वामी सामल तुम बिना नवि रहे माह मन्न | कठिन थई ने कां रह्यो रे वचन ताहरु छन्न । मंदिरमा में नवि लह जे को पशुमा सोर। ते देखि नीठोर थयोरे आसो नाह निठोर ॥ १० ॥
कार्तिक मास ...
नाह किम रहे कामिनी कातीय मास रे। काई दास रे जाणी देव दया करी रे॥ आ तुझ बिना नवि गमे तातने मात रे । प्राज रे काई काज रे ए कुन सरे सुरिण महि रे ।। ११ ॥
बोटक
सुरिण सही सु काज सारे न संभारे नाथ । मुझ कनक कुडल कियूर ककरण नहीं भावे हाथ ।। मुझ राखडीनी पाखडी पद कडि पडला दुरि । तिलकः अंग नवि क न घर मांग सिंदूर ।। पोटी मोटी मोरलि मोती दहे मुझ अंग । घुघरी स्त्रमकार नेउर चूनडी ना' रंग ॥ धाचरण भूषण अंग दूषण एक क्षण नहीं पास । किम रहे कामिनी एकलीरे माह काती मास ।। १२ ।।
मंगसिर मास
मा मागभिरे मन बल विहस थाये रे । माय रे राय नेमी जिन कारणे रे ।। ग्रा जिम मृग मुगी चकित चुकी जूयो रे । लोयणे लोपे रुये बारणे रे ।।