Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुल पद : व्यक्निक कृषिक 2. जयकुमार आल्यान
यह कवि का सबसे बड़ा काव्य है जो ४ सर्गों में विभक्त है। जयकुमार प्रथम तीर्थकर भ, ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत के सेनाध्यक्ष थे। इन्हीं. जय कुमार का इसमें पूरा चरित्र वणित है। पाख्यान वीर-रस प्रधान है। इसकी रचना बारडोली नगर के चंद्रप्रभ चैत्यालय में संवत् १६५५ को मंत्र शुक्ला दशमी के दिन समाप्त हुई थी।
"अमकुमार" को सम्राट भरत सेनाध्यक्ष पद पर नियुक्त करके शांति पूर्वक जीवन बिताने लगे। अयकुमार ने अपने युद्ध-कौशल से सारे साम्राज्य पर प्रखण्ड शासन क्यारित किया । वे मौन्दर्य के खजाने थे। एक बार वाराणसी के राजा "प्रकम्पन" ने अपनी पुत्री "सुलोचना" के विवाह के लिए स्वयम्बर का प्रायोजन किया । स्वयम्बर में जयकुमार भी सम्मिलित हुए। इसी स्वयम्बर में "सम्राट भरत" के एक राजकुमार "अर्ककीति" भी गये थे, लेकिन जब सुलोचना ने जयकुमार के गले में माना पहिना दी, तो वे अत्यन्त क्रोधित हुए। अकीति एवं जयकुमार में युद्ध हमा और अन्त में जयकुमार की विजय के पश्चात् जयकुमार का सुलोकाना के साथ विवाह हो गया ।
इस "पाख्यान" के प्रथम अधिकार में जयकुमार-सुलोचना-विशह का वर्णन है । दूसरे और तीसरे अधिकार में जयकुमार के पूर्व भवों का वर्णन मोर गतुर्थ एवं मन्तिम अधिकार में जयकुमार के निर्वाण-प्राप्ति का वर्णन किया गया है।
"पाख्यान" में वीर-रस, शृंगार-रस ए शांत रस का प्राधान्य है । इसकी भाषा राजस्थानी डिंगल है । यद्यपि रचना-रधान बारडोली नगर है, लेकिन गजराती पाब्दी का बहुत ही कम प्रयोग हुअा है। इससे कवि का राजस्थानी प्रेम अलकता है।
"सुलोचना" स्वयम्बर में वरमाला हाथ में लेकर जब याती है, तो उस समय उसकी कितनी सुन्दरता थी, इसका कवि के शब्दों में ही अवलोकन कीजिए--
जाणीए सोल कला पशाशि, मुख चन्द्र सोमासी कह । अघर विद्रुम राजताए, दन्त मुक्ताफल' लहुँ । कमल' पत्र विशाल नेत्रा, नाशिका सुक चंच । अष्टमी चन्द्रज भाल सोहे, वेणी नाग प्रपंच ।। सुन्दरी देखी तेह राजा, चितवे मन मांहि । ए सुन्दरी मूर सूदरी, किन्नरी विम वोह वाय ।।