Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रनकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१५५ के गुणानुवाद करना इनका प्रमुख कार्य था । वे स्वयं भी कवि थे । छोटे-छोटे गीत लिखा करते थे । अब तक इनके निम्न गीत मिल चुके हैं ।
१. कुमुदचन्द्र गीत २. पारवनाथ गीत ३. गीतलनाथ गीत ४. नेमिगीत ५. गुर्वावली गीत ६. शांतिनाथनी विनती ७. वसिभनी विनती ८, लघु गीत
उक्त सभी गोत छोटे छोटे हैं। लेकिन इतिहास लेखन में सभी गीत उपयोगी है । यहां एक गीत जिसमें कुमुर की विशेषताओं का पर किया गया है दिया जा रहा है---
प्रावो साहेलडी रे सहू मिलि संगे । बांदो गुरु कुमुदचन्द्र ने मनि रंगि। छन्द पागम अलंकारनी जाण, बारु चितामणि प्रमुख प्रमाण । तेरे प्रकार ए चारित्र सोहै, दीठठे भरियण जन मन मोहे । साह सदाफल जेहनो तात, धन जनम्यो पदमां बाई मात । सरस्वती गच्छ तणो सिणगार, वेगस्यु' जीतिमो दुधर भार । महीयले मोढवंशे सु विख्यात, हाप जोगाविया वादी संघास |
जे नरनारी ए गोर गुण गवे, संयमसागर कहे ते सुखी पाय ।। ६३. धर्मचन्द्र
ये भट्टारक रत्नकीति के संघ में रहते में। छोटे छोटे गीत लिखने में ये । भी रुचि लेते थे । अापका एक गीत मिला है जिसमें भट्टारक परम्परा, प्रतिष्ठाकारकों की प्रतिष्ठा आदि के सम्बन्ध में लिखा गया है । रचना सामान्य है।
६४. राघव
ये भी भट्टारक रत्नकी ति के संघ में रहते थे। विद्वान थे। कभी-कमी