Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भाचार्य वन्द्रकीति
सुलोचना एक एक राजकुमार के पास पाती मौर फिर आगे चल येती। उस समय वहां उपस्थित राजकुमारों के हृदय में क्या-क्या कल्पनाएं उठ रही थीइसको भी देखिए
एक हंसता एक खीजे, एक रंग फरे नवा । एक जाणे मुझ बरसे, प्रेम घरता जु बवा ।। एक कहे जो नहीं वरें, तो अम्यो तपवन जायसु। एक कहतो पुण्य पाये, एह बलभ घासू ॥ एक कहे जो प्राण्यातो, विमासण सह परहरी । पून्य फल ने बातगोए, ठाम सुभ हैपडे पर ।
लेकिन जब सुलोचना ने अकति गले में परमाल नही डास, तीजयुकुमार प्रकीति में युद्ध भडक उठा। इसी प्रसंग में परिणत युद्ध का समय भी देखिए
मला कटक विकट कबहूं सुभट सू,
धरि धीर हमीर हठ विकट सू । करी कोप कूटे यूटे सरबहू,
चक्र तो समर खडग मूके सहु ॥ गयो गम गोला गगनांगणे,
गो प्रग प्रावे वीर इम भणे । मोहो मांहि मूके मोटर महीपती,
चोट खोट न प्रावे मरती ॥ बयो अवा करी बेहद्द इसू,
कोपे करतां कूरे प्रखड सू । घरी धरी घर ढोली नाखता,
कोपि कडकडी साजन राखता ।। हस्ती हस्ती संघाते प्राथंडे,
रथो रथ सूमट सहू हम भडे । हय हषार व जब छजयो,
नीसारण नादें जग गज्जयो ।
कषि मे अन्त में जो अपना वर्णन किया है, वह निम्न प्रकार है