Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भंडारक रनकीति एवं कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व
९४.
मझार" लिखा है जिनसे पता चलता है कि वे सवंत १७४३ में ऋषभदेव की यात्रा पर आये थे | संघ गुरत से चला था जिसके प्रमुख भ० रत्नचन्द्र । यह संघ अखई एवं साई ने चलाया था जो पहिले गे ही संपति कहलाते थे. इगमें २० पद्य हैं ।
इस प्रकार पं० श्रीपाल को साहित्यिक सेवाएं अत्यधिक उल्लेखनीय एवं चिरस्मरणीय हैं ।
५३. जयसा
ब्रह्म जयसागर भट्ारक रीति के प्रमुख शिष्यों में से थे। ये ब्रह्मचारी थे और जीवन पर्यन्त इसी पद पर रहते हुए अपना आत्म विकास करते रहे । जयसागर अपने गुरु के समान ही साहित्याराधना में लगे रहते थे। उन्होंने या तो भट्टारक कोति के सरवन्ध में पद हैं या फिर छोटी छोटो अन्य कृतियां लिखी है। उनकी अब तक किसी बी रचना की प्राप्ति नहीं हो सकी है ।
जयसागर के जीवन के सम्बन्ध में अभी कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है लेकिन इन्होंने अपनी सभी रचनाओं में भट्टारक रनकीर्ति का ही उल्लेख किया है इसलिये ऐसा जान पड़ता है कि वे नि के समय में ही स्वर्गवासी हो गये थे। रत्नकोनि संवत १६५६ तक भट्टारक पद पर रहे इसलिये ब्रह्म जयसागर को भी हम इससे आगे नहीं ले जा सकते | गुजरात का घोघा नगर इनकी साहित्यिक सेवाओं का केन्द्र था। वैसे ये भी भट्टारक रनकीति के साथ रहने बाले पंडित थे । जनसागर की अब तक निम्न रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं
१.
२.
(१) टीव
(२) मलिदासको वेल
१३) संघ नीत
(४) विधानविगीत
(५) संकटहर पार्श्वनाथ जिनगीत
(६) क्षेत्रपाल बीच
७) प्रभाति
...क्षेत्रपाल गीत
कीर्तिपूजा गीत
बेल की पूरी प्रा पूरर पब भागे दिया
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