Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महारक रत्नकीति एवं कुमुदयन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
वंदो गुरु विद्यानन्द सूरि, जेह नामे दुख जाये दूरि | जनम जनम नां पाप पलाय, जिम रुडाँ मन वांछित धाय ।। १ ।। रिल भूषण कंटा गति. हा सग जाये सुप्रगतो। वचन अनुगम अमिय समान, ग्यासमीन रंज्यो सुस्तान ॥ २ ॥ लक्ष्मीचन्द्र नमो नित पाय, जेहनी सेव करे नर गय।। गछनायक गुणवो मन्डार, भव सागर उतारो पार ॥ ३ ।। अभयचन्द्र सेवो सहु संत, जेहना मुग्गनो नवि प्रत ।। पाले संयम साधु सुभारण, जेहनी महीपति मनि प्राण || ४ ।। अभयनन्दि यति कोमलकाय, जहां वचन भला सुखदाय । साधु शिवोपरिण कहीं एह, भवियग नाम जपा सहु तेहैं ॥ ५ ॥ रसनकी रति रुपे प्रति भलो, चन्द्रकिरण सम जस उजलो। हबद्ध वंश तणो सिणगार, जहना गुणनो नवि पार ॥ ६॥ कुमदबाद गुरुवो चांदलो, रत्नकीरति गाटे गोर भलो। मोढवंश उदयाचल रवि, जेहना बचन बरसाणं कवि ।। ७ ।। अभयचन्द्र सेवो शुभमति, जहां चरण नमें नरपती । यादि शिरोमणि कहीं पह, गुण मागर विद्यानो गेह ॥ ८ ॥ अभयचन्द्र कुल अवर चन्द्र, उदयो ५न्य तम्बर कैद ।। दो भबियण मनि प्रांगद, वादो सहे गुरु श्री शुभ चन्द्र ।। ६ ।। ................."सम रषि, जेहना वचन ब खाने कवि । .................''वर जसवंत, जहना पद सवे माहत ।। १० || सम........."गुरु राय, समरता सुख संपति वाय। रत्नशशि सेवो वन्ध काल, प्रणमे जिन सेवक धीमान || ११ ।।
इति श्री गुर्वावली समाप्त ।
बाहुवलीनी वीनती-इसमें ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र बाहुबली की स्तुति को गई है । विनती १२ पद्यों में पूर्ण होती है। रचना सामान्य है । पूरी विनती निम्न प्रकार है
श्री जिनवर बदन उपन्तिमाय, पाबा सुत्र सररवति प्रगमू पाय । लड्न वाछितायं विद्या विवुध, जिवाणी मनोपम हो सुद्ध ।। १ ।। भुजलि गुण वणवू तुझ पसाय, जीभ हेय डले हरप प्राण पाय । वृषभ नुप सुन्दर तनुज एह, धनु पाचसे पचीस उच देह ॥ २ ॥