Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
भट्टारक रलकीति एव कुमुदचन्द्र : व्यक्ति व एवं कृतित्व
का परिचय के साथ ही कवि की कान कुशलता का भी परिचय मिलता है। भट्टारक यमयचन्द्र के समय में लिखा हुमा एक पद देखिये
चन्द्रवदनी मृग नोचनी नारि पभानन्द्र गच्पन नायक नांदो संकलांघ जयकारि । मदा महामन्द मोड़ से मुनिवर, गोयम सम गुणधारी । अमावलबि- गम्भीर विचक्षण, गुरुतो गुण भण्डारी ।।चन्द्र।। निधिल कलानियिनिमल विधानिधि विकट वादि हल हारी। रण्य रूप रमित नर नायक, सज्जन जन सुखकारी॥चन्द्र।। सरमति गट शृगार शिरोमणी, मूलसंच मनोहारी । कुमुदचन्द्र पद कमल दिवाकर, श्रीपाल सुख बलीहारी चन्द्र।।
इसी तरह भट्टारक रत्नचन्द्र पर जो पद लिखा है वह भी प्रत्यति महाय. पूर्ण है।
नायो रे सा चन्द्रवदन गुणमाल । मुरिधर रत्नचन्द्र ने बधाको मोतीया भरि थाल यावा। कील प्राभूपरंण अंगे सोहे, संजय विदश प्रकार । प्रष्ट विपति मुन गुणोत्तम, धर्म रादा वश घान प्रायो। प'िमा सहे निज अगै अगे. को परिग्रह त्याग । श्रीपान कहे एह पंचम काले, प्रगट करे शिव प्राणा | Talll
संवत् १५३४ की ज्येष्ठ शुक्ला योदशी के दिन सुग्तनगर में शाति विधान किया गया। संघ को भेज दिया गया तम्मा भट्टारक रत्नचन्द्र ने लिलक किया गया । जिन यन्त्र की क्ष ल की गयी उस समय विडत धोपम बहीं थे।
संवत १७२१ में पोरबन्दर में महोत्सव किया गया | चारों प्रकार के सब एकत्रित हुए । भट्टारक अभचन्द्र का पट्ट स्थापित किया गया । उस ममव शुध चन्द्र मुनि अवस्था में थे जो गौतम के समान लगते थे ।
श्रीपाल ने भट्टारक शुभचन्द्र की हमची लिखी। इसमें उसने भटटारक
१. सखी संयत सस्ता एक बीसे वसी जेष्ट' ची प्रतिपर बीवसे ।
श्री पोवननयर मोहाछव हवा मल्या चतुर्विध संघ हो नवा नवा ।