Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
भट्टारक रत्नचन्द्र
चडता पडतां दुगरे, प्रानन्द हल अपार रे। बावन गज जब निरखीये, त्यारे मुखे बोले जयकार रे ।।१३। संवत सतर सतबनो, पोम सुदि तीज सोमबार रे । सिद्ध क्षेत्र अति सोभते, ते निमहि मानो नहि पार रे ॥१४|| श्री शुभचन्द्र पट्ट हबो, पर यदि मद भांजे रे । रतनचन्द्र मुरिवर न भरा नी ?
॥इति गीत ॥
इस प्रकार भट्टारक रतन चन्द्र ने हिन्दी साहित्य के विकास में 'जो महत्वपूर्ण योगदान दिया वह इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा । ५२. श्रीपाल
संवत 1748 की एक प्रणरित में पं श्रौपाल के परिवार का निम्न प्रकार परिचय दिया गया है--
पण्डित बाग भार्या वीरवाई
पण्डित जीवराज भार्या जीवादे
पण्डित श्रीपाल भार्या सहजलदे
पण्डित अखाई पं० अमाती-4 अनंतदास, पं० बलभदास-विमलदास
पुत्री-अमरबाई, प्रेमबाई, बेलबाई
उक्त प्रस्ति के अनुसार पं० श्रीपाल के पितामह का नाम बणायम एवं पिता का नाम जीवराज था । साथ ही जमकी पातामह वीरवाई एवं भासा जीवादे थी । भोपाल की पत्नी का नाम सहजलदे था । उसके पांच लड़के अखई, अमरसी, अनंतदास, बल्लभदास एवं विमलदास एवं तीन पुत्रियां अमरबाई, प्रेमाबाई एवं बेलबाई यौ। श्रीपाल का पूरा वंश ही पण्डित था। वे हमतट के रहने वाले थे । सया संघपुरा जाति के थानक थे । भोपाने एवं उसके पूर्वज भट्टारकीय परम्परा के गणित थ तथा भट्टारक ग्लकोति. मट्टारका मुमुदचन्द्र, अभय चन्द्र, शुभवेन्द्र एवं भट्टारक रलचन्द्र परम्परा में उनकी गहरी भास्था थी तथा अधिकांश समय उनके संघ में रह तेनाये थे ।