Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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(१८) शोल गोल
इस गीत में कवि ने चारित्र प्रधानता पर जोर दिया है। यदि मानव असंयमी है काम वासना के अधीन होकर अनैतिक आचरण करता है तो उसके अच्छी गति कभी प्राप्त नहीं हो सकती। दूसरी स्त्रियों के साथ जीवन बिगाड़ने के लिये कवि कहता है
भट्टारक कुमुदचन्द्र
जही खोटी
पतंगतो । संगनी
तेहवो चटको रे परत्रिय
परत्रिया केरो प्रेम प्रिउडा रखे को जागो खरो ।
दिन चार रंग सुरंग रुमडो, पछे मरहे निरधरे । जो घणां साथ नेह मांडे छांड़ि ते हस्यु बातडी इस जाणी मन करिनाला, परनारी गाये प्रोडा ॥
गीत में १० डाल एवं १० त्रोटक छन्द है ।
(१६) चिन्तामणि पार्श्वनाथ गीत
प्रस्तुत गीत में चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रष्ट द्रव्य से पूजा करने के महात्म्य का वर्णन किया गया है । अष्ट द्रयों में प्रत्येक द्रव्य से पूजा करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है।
जल चन्दन अक्षत वर में चर दीवडलो रे । फल रचना प्ररथ करो सखी जिम न पडो भव कूप रे
गीत में १३ प है । गीत के प्रांत में कथि ने अपने एवं अपने गुरु दोनों के नामों का उल्लेख किया है । चिन्तामणि पार्श्वनाथ पर कवि का एक गीत र भी मिलता है ।
(२०) दीवाली गीत
इस गीत में दीपावली के अवसर पर भगवान महावीर के मोक्ष कल्याणक उत्सव मनाने के लिये प्रेरणा भी गयी है। उसी समय गोतम गणधर को कैवल्य हुआ और अपने ज्ञान के आलोक से लोकालोक को प्रकाशित किया । देवताओं ने नृत्य करके निर्वाण कल्याणक मनाया तथा मानव समाज ने घर घर में दीपक जला कर निवारण कल्याणक के रूप में दीपावली मनायी ।