Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक कुमुदचन्द्र
(११) भरतेपवर गीत
___ कवि ने भरतेश्वर गीत का दूसरा नाम 'अष्ट प्रातिहयं गीत' भी लिखा है। इसमें यादिनाथ के समवसरण को रचना एवं भगवान के प्रष्ट प्रातिहार्यों का वर्णम दिया हुमा है । गीत सरल एन मधुर भाषा में निबद्ध है । इसमें सात छन्द है मन्तिम छन्द निम्न प्रकार है
: नीगने जो , वनीस पति यवत । युगला धर्म निवारण स्वामी सही मंजल विचरंत । शेष कभने जीते जिनवर थया मुक्ति थीवंत । कुमुदचन्द्र कहे श्रीजिन गाता लहिये सुख अनंस ॥७॥
(१२) पाश्र्वनाथ गीत
इस गीत में कवि ने हांसोट नगर के जिन मन्दिर में विराजमान पार्श्वनाथ स्वामी के पंच कल्याणको का वर्णन किया है। गीत में १० पद्य हैं हैं । अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है
श्री रलकीरति गुरुने नगी, कीधा पावन पंच कल्याए । सुरी बुमुदचन्द्र कहे जे भणे, ते पामें अमर विमान ॥१०॥
(१३) गौतम स्वामो गीत
गौतग स्वामी के नाम स्मरण के महात्म्य का वर्णन करना ही गीत रचना का प्रमुख उद्देश्य रहा है। पूरे गीत में ८ पद्य हैं।
(१४) लोडण पार्श्वनाथ विनती
लाइ देश के दमाई नगर में पार्श्वनाथ स्वामी का प्रख्यात मन्दिर है। वहीं की पार्श्वनाथ को जिन प्रतिमा लोडा पार्श्वनाथ के नाम से जानी जाती है । भट्टारक वा मुदचन्द्र ने एक बार अपने रांध सहित बड़ा की गापा थी। पार्श्वनाथ स्वामी की सातिशव प्रतिमा है जिसका नाम स्मरणा से ही विग बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती है । विनती में ३० 'पञ्च है-अन्तिम तीन पद्य निम्न प्रकार है
जेह ने नामे नासे शोक, संकट राघला थाये फोक ।
लक्ष्मी रहे नित संगे ॥२८॥