Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
(२१) चौबीस तीर्थ कर देह प्रमाण गीत
प्रस्तुत गीत में चौबीस तीर्थ करों के देह प्रमाण पर चार चरणों का एक एक पद्य निबद्ध किया गया है। रचना साधारण श्रेणी की है। जो २७ पद्यों में पूरी होती है। मन्तिम पद्य निम्न प्रकार है
ए चौबेसे जिनवर नमो,
जिम संसार विष मवि भमो । पामो अविश्वल सुखनी खानि
कुमुदचन्द्र कहे मीठी वाणी ॥२७॥
(२२) बरणजारा गीत
इस गीत में जगत की नश्वरता का वर्णन किया गया है । गीत की प्रत्येक पंकि "सजारा ह संसार देस, मभीय भमो तु उसनो" से समाप्त होती है । यह मनुष्य वणजारे के रूप में यों ही संसार में भटकता रहता है। वह दिन रात पाप कमाता है इसलिये संसार बन्धन से कभी नहीं छूटने पाता ।
पाप कर्या ते अनंत, जीव दया पालो नहीं। सांची न बोलियो बोल, मरम मो साबहु बोलिया ।।
गीत में विविध उपाय भी सुझाये गये हैं । गीत में 41 पर हैं।
पद साहित्य
छोटी बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त कुमुदचन्द्र ने पद भी पर्याप्त संख्या में निबद्ध किये हैं। उस समय रद रचना करना भी कविगत विशेषता मानी जाती थी। कबीर, मीराबाई, सूरदास एवं तुलसीदास सभी ने आने अपने पदों के माध्यम से भक्तिरस की जो गंगा बहाई धी वैसी ही अथवा उमी के अनुरूप कुमुदचन्द्र ने भी अपने पदों में प्रर्हद भक्ति की मोर जन सामान्य का ध्यान आकृष्ट किया । वे भगवान पार्श्वनाथ के बड़े भक्त थे । इमलिये अपने पदों में भी पाश्वनाथ भक्ति की गंगा बहाई । वे कहते हैं कि उन्होंने प्राज भगवान पापर्व के दर्शन किये हैं। उनका शरीर सावला है, सुन्दर मति गान है तथा सिर पर सर्प सुणोभित है। वे कमठ के मद को तोड़ने वाले है तथा चकोर रूपी संसार के लिये वे चन्द्रमा के समान हैं। पाप रूपी अवकार को नष्ट कर प्रकाश करने वाले हैं तथा सूर्य के समान उदित होने वाले हैं। इन्हीं भावों को कवि के शब्दों में देखिये--