Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक कुमुदध
संवत् १७४८ कार्तिक शुक्ला पञ्चमी के दिन लिखित एक प्रशस्ति में भट्ट रक कुमुदचन्द्र की पूर्ववर्ती एवं उत्तरवर्ती भट्टारक परम्परा निम्न प्रकार दी है --
मूल संघ, सरस्वती गच्छ एवं बलात्कारगरा
आचार्य कुन्दकुन्द
भट्टारक लक्ष्मीचन्द्र
भट्टारक अभयनन्द्र
अभवनन्दि
रत्नकीति
[१६३०-१६५६]
कुमुदचान
१६५६-१६८५]
यभयन्द्र
(द्वितीय)
शुभचन्द्र
(१७२१)
रत्नचन्द्र
[सं० १७४५]
इस प्रकार भट्टार फ मृद चन्द्र के पश्चात संवत १७०० के पुर्व तक भट्टा र अभयनन्द्र एवं भ. शुभचन्द्र और हुआ । इन दोनों भट्टारकों का परिचय निम्न प्रकार है
४६. मट्टारक प्रभयचन्द्र
अभय चन्द्र संवत १६८५ में भट्टारक गादी पर विराजमान हुए। वे मट्टारक बनते समय पूर्णयुवा थे। उन्होंने कामदेव के मद को चकनाचूर कर दिया था वे विसता में गौतम गणधर के समान थे । अपूर्व क्षमाशील, गंभीर एवं गुणों की न्वान थे । विद्या के वे कोप थे तथा वाद विवाद में वे सदेव अपराजित रहते थे पं. श्रीपाल ने उनके सम्बन्ध में अपने एक पद में निम्न प्रकार परिचय दिया है
चन्द्रवदनी मृग लोचनी नारि अभय चन्द्र गछ नायक वांदो, सकल संघ जयकारि ।