Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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मट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
रतन चन्द्र पाटि कुमुदचन्द्र पक्ति प्रेमे पूजो पाय | तास पाटि श्री अभयचन्द्र गोर दामोदर नित्य गुरा गाय ।। ||
भट्टारकों की वेश भूषा लाल चद्दर वाली होती थी । बदर गी राजस्थानी में पछवड़ी कहते हैं । इसलिय गन भट्टा अभय चार अगनी 'मट्टारसीप वेश भूषा में सभा में बंटते थे दो वे कितने सुन्दर एवं नुभावने लगते थ ६।। को धर्म सागर ने एक गीत में छन्दी बद्ध किया है -
लाल पिछोटी प्रभयानन्द्र सोहे निरचला भनियकनां मन माहे। प्रांगानो का पानोरे, मायडू ने पूनिगपन्द शुक ची मम नासिका ?, अथा प्रधानां वृक्षरे कार बाबू हलिया रे, है ने सरस्वती वाल्हो यांदि सोमन पहजो पछि, हाथि रडियो ली रे
सबत् १७०६ में भट्टारक मापनन्द का मुरत नगर में विहार हुमः। उस समय उनका वहां अभूतपूर्व स्वागत हप्रा । पर घर में उत्सव प्रायोजित किये गये । मंगल गीत गाये गये। नारी पोर प्रानन्द ही ग्रानन्द छा गया। जय जय कार होने लगी। इस। एक एय का “देवजी" ने एक प निम्न प्रकार छन्दो बर।। किया है
माज पाणद गाई अलि धगी ए, कांई बरत यो जय जय कार । अपचन्द्र मनि श्री-याा काई सन्त मगर मझार रे ॥ घरै घरे उच्छव प्रति , काई माननीगल गाय रे । अग पूना , उवा रण", काई नाम छहार वडास रे। पन्नोत यांणो गोर प्रयाभना रे, वागी मीठी अगर मान तो । धमं ये मांगी ने प्रतिबोध ॥, पुननि ना करे परिक्षार जी। संबत मारोतरे काई नरिजी प्रेमजीनी पूगी पास रे। रामजीन श्रीपाल हरयो Tu, काई वेजी कुपरजी मोहनदास रे।' मोनम गम मार सोभनो ए, काई बूधे जयो प्राय माररे । सकल फला गुगा मंडगो ए, काई देव नो कहे उगो उदार र 1
इस तरह के और भी बीमो मौत भट्टारका अमेयनन्द्र के मावन्ध में के ईन गिष्यों द्वारा लिखे हुये मिलते हैं जिनमें उनकी भूरि भूरि प्रशंसा व गहें । अभय चन्द्र का इतना अच्छा वर्णन उनके प्रसाधारण पक्ति की मोर स्पपट