Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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(२) ओपन क्रिया विनती
मैहार कुमुदचन्द्र
इसमें पेन क्रियाओं के पालने पर मकाश डाला गया है।
पनाओं
में मूलगुण १२ व्रत १२ तप, ११ प्रतिमा, ४ प्रकार के दान तथा ९ श्रावश्यकों के नाम गिनाये गये है । विनती की अन्तिम दो पंक्तियां निम्न प्रकार है-
जे नर नारी गावसी ए विनती सुचंग | ते मन वांछित पामसे नित नित मंगल रंग ।
(३) विनाथ विवाहलो
इसका दूसरा नाम ऋषभजिन विवादलो भी है। कवि की "विवाहलो" बडी कृतियों में गिना जाता है जो ११ नालों होता है । विवाहली नाभिराजा की नगरी - कोशल नगरी वर्णन में प्रारम्भ होता है। नाभिराजा के महदेवी रानी थी जो मधुर वाणी युक्त, रूप की खान एवं रूप की ही कली थी। रानी १६ स्वप्न देखती है । स्वप्न का फल पूछती है और यह जानकर प्रसन्नता से भर जाती है कि वह तीर्थ कर की माता बनने वाली है । प्रादिनाथ का जन्म होता है । इन्द्रों द्वारा जन्म कल्याणक मनाया जाता है। यादिनाथ बड़े होते हैं और उनका विवाह होता है । इसी विवाह का कवि ने विस्तृत वर्णन किया है। कच्छ महाकच्छ की कन्याओं की सुन्दरता, देवताओं द्वारा विवाह की तैयारी, विवाह में बनने वाले विविध व्यञ्जन, बारात की तैयारी, ऋषभ का घोड़ी पर चढना, बाद्ययन्त्रों का बजना, अनेक उत्सवों का आयोजन प्रादि का सुन्दर वर्णन किया गया है । अन्त में भरत बाहुबलि आदि पुत्रों की उत्पत्ति, राज्य शासन, वैराग्य प्रादि का भी वर्णन किया गया है ।
प्रस्तुत रचना तत्कालीन सामाजिक रीति रिवाजों की प्रतीक है। कवि ने प्रत्येक रीति रिवाज का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। विवाह में बनने वाले व्यजनों का वर्णन देखिये
दूध पाक चखासा करीयां, सारा सकरपारा कर करीया । मोटा मोती अमोदक लावे दलिया कसम सीमा भावे ।
प्रति सरवर सेवइया सुन्दर, प्रारोगे भोग पुरन्दर श्रीसे पापड मोटा तलीया, मोरयाला प्रति उजलीया मीठे सरसी ये रई दोषी, मेल्हे केरो श्रवा कीधी केर काकड स्वाद लागे, लिवू जगतां जीभे रस जाणं ।
विवाहलो संवत् १६७८ प्रषाद शुक्ला २ सोमवार को समाप्त हुआ था। इस समय कुमुदचन्द्र घोघा नगर में थे ।