Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रलकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतिस्व
-: अपने प्रोजस्वी, मधुर तथा प्राकर्षक वाणी से सब का हृदय जीत लिया । वे जहां भी
जाते अभूतपूर्व स्वागत होता तथा समाज उनके लिये पलक पावडे बिछा देता। कुकम छिडका जाता तथा चौक पर करके बघावा गाये जाते । चारों ओर पदा भक्ति एवं गुणानुवाद का वातावरण बन जाता । उनके दर्शनमात्र से समाज प्रपने आपको धन्य मान लेता।'
कुमुदचन्द्र के एक शिष्य संयमसागर ने तो समस्त ममाज से उनके स्वागत करने के लिये निम्न पद लिखा है: -
प्रावो राहेलडी रे सह मिलि संगे
वांदो गुरु कुमदचन्द्र ने मनि रंगे। छंद प्रागम अलंकार नो जाणा
चारु चितामणी प्रमुख प्रमाण । तेर प्रकार ए चारित्र सोहे __ दीठडे भवियण जन मन मोहे । शाह सदाफल जेहनो तात __ धन' जनम्यो पदमाबाई मात । भरस्वती गच्छ तरणो सिणगार
देगस्यु जीतियो दुद्धरमार | महीयले मोळदंणो सू विम्बात
हाथ जोड़ानिया वादी संघात । जे नरनार ए गोर गुण गाने __ संयम सागर कहे जे मुम्बी थाय ।।
गर्नेश कवि चे भी एक क्रमवचन्द्रनी हमनी लिखी है जिसमें उसने कुमुदचन्द्र के गुणों का विस्तृत वर्णन किया है । बारडोली नगर में भट्टारक गादी स्थापित करने एवं उस पर कुमुद चन्द्र बो पदटस्थ करने में संधाति कहानजी,स सहस्रकरण जी मल्लिदास एवं गोपाल नी का भवझे बड़ा योगदान था । हमबी में कुमुदचाद्र के पांडित्य एवं विद्वत्ता की निम्ग' शब्दों में प्रशांसा की है
पंडित पणे प्रसिद्ध प्राक्रमी बागवादिनी वर एहने सेवो सुरतरु चिन्त्यो नितामरिण उपमा नहीं कहे ने रे
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सुन्वरि रे सा प्रावो, तम्हे कुकमु छडो वेवझायो पास मोतिये चौक पूरायो, कडा सह गुरु कुमुवचन्द्र ने बजावे ।