Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्लकीति एवं कुमुद चन्द्र : श्यक्तित्व एवं कृतित्व
जयसागर का आचार्य पद पर दीक्षित किया । स प्रथम प्रासुक जल से स्नान कराया गया। भट्टारक रलकीति ने उसके माथे पर तिनक किया तथा पाच महाव्रतों की अगीकार कराया गया।
____ इस प्रकार भट्टारक रत्तकोनि जीवन पर्यन्त देश के विभिन्न भागों में विहार करते रहे । वास्तव में भारत रत्नहीति का युग मट्टारका का स्वर्ण युग था जब सारे देश में जन के म्याग एवं तपस्या की इतनी अधिक प्रभावना थी कि समाज का अधिकांश भाग उन पर मर्मारत यः । उनके आदेण यो गोवार्य करने में ही जीवन की उपलट मान जाता था। भारक संस्था भी प्रान प्रापको साध समाज का एक प्रतिनिधि बनने का पूरा प्रयास करनी रहीं । समय समय पर उसने अपने को योग्य प्रमागिरा किया और समाजवं मास्कृति के विकास में पर्ण जागरुक रहा । रलीति का विशाल व्यक्तित्व समाज को याशात्रों का केन्द्र था।
शिष्य परिवार
रकीति वंगे तो अनेकों शिष्यों वः आचार्य थे, जीवन निर्माता थे और उनके मार्गदर्शक भी, थे लेकिन उनमें गे मूवन्द, ब्रहम जानागर, गणेश, राधव एव दामोदर के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । इन सभी ने रत्नमति के सम्बन्ध में पद एवं गीत लिखे हैं । के मुद चन्द्र तो रत्नमति के पश्चात भट्टारक गादी पर ही बैत थे । वे योग्य गृह के योग्य शिष्य थे। लेकिन गण ने सी के संबंध में सबमे अधिक पद एवं गीत लि हैं। इन सब के सम्बन्ध में प्रागे विस्तृत प्रकाश डाला जग्गा । ऐसा लगता है कि रलकोति के साथ उनका शिव्य परिवार भी चलता घा पौर तह उनके प्रति अपनी भःि। भान प्रगट करता रहता था । रत्तोति की परम्परा के भट्टारको नछोडकर अन्य भट्टारकों के सम्बन्ध में इस प्रकार के गीत एवं पद प्रायः नहीं मिलने हैं।
कृतित्व
रकीति भक्त कवि थे। नेमिराजुव के जोबन ने उन्हें सबसे अधिक
३.
माघ सुदी एकाचसीए ए सोभन सुक्रवार के 1 श्री रत्नकीति सुरीवर हमा तिलक हवा जयकार के सहम उयसागर आलसि ए आचारज पद सार के । जल यात्रा जन देखताए. श्री रल्लकीति यतिराय के । पंच पहावत प्रापया ए संघ सानीध्य गुरुराय के 1
मल्लियासनी वेल