Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्न कीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इसके अतिरिक्त सुलोचना चरित्र को एक पाण्डुलिपि ईडर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है।
वादिचन्द्र की हिन्दी में भी कितनी ही कृतियां मिलती है जो राजस्थान के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती हैं। अब तक उपलब्ध कुछ कृतियों के नाम निम्न प्रकार है:
१-पार्श्वनाथ वीनती २-श्रीपाल सौभागी अाख्यान ३-बाहुबलिनो छंद ४-नेमिनाथ ममवसरण ५-द्वादश भावना ६-प्राराधना गीत ७-अम्बिका कथा ८-पाण्डवपुराण
पार्श्वनाथ विनती की एक प्रति दि. जैन मन्दिर कोटडियों का, डूगरपुर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत हैं। इम'का रचनाकाल संवत् १६४८ दिया हुआ है।' श्रीपाल सोभागी प्रस्थान को उदयपुर एवं कोटा में शास्त्र भण्डारों में प्रतियां सुरक्षित हैं। इसका रचना काल संवत् १६५१ है । पं. नाथूराम प्रेमी ने आख्यान के विषय में लिस्ना है कि यह एक गीति काव्य है और इसकी भाषा गुजराती मिश्रित हिन्दी है। इसकी रचना संघपति धनजी सा के प्राग्रह से हुई थी। याख्यान में सभी रसों का प्रयोग सुपा है तथा भाषा एवं शनी में सरलता एवं प्रवाह है । यह एका भक्ति प्रधान काव्य है । काव्य का एक उदाहरण देखिये
दान दीजे जिन पूजा कीजे, समकित मर्ने राखिजे जी सुत्रज भरिणए णवकार गरिएए, असत्य न विभाषिजे जी लोभ तजी जे ब्रह्म घरीजे, सांभल्यातु फल एह जी प गीत जे नर नारी सुणसे अनेक मंगल तह गेह जी
१. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को ग्रंथ सूची पंचम माग-पृ. सं. ११६१
राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की प्रथ सूची पंचम माग-पृ. सं. ४६१ संघपति धनजी सवा बचने कीधी ए प्रबन्ध जी । फेवलो श्रीपाल पुत्र सहित तुम्ह नित्य करो जयकार जी।