Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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३८
मानसिंह मान
कविरस मंजरी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । अन्तिम रचना शृगार रस प्रधान है नायक नायिका वर्णन मुम्बन्धी १०६ इसमें पद्य हैं। इसके प्रादि और अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है
सकल कला निधि वादि गज', पंचानन परधान । श्री शिव विधान पाठक चरण, प्रणमी बंधे मुनि भान ||१॥ नव अंकुर जोवन भर्द, लाल मोहर होइ ।
कोपि सरल भाषण ग्रह, चेष्टा मुग्धा होइ ॥२॥ अन्तिम- नारि नारि सब को कहे, किऊ नायकासु होइ ।
निज गुण मनि मति रीति धरी, मान ग्रंथ अब लोड ।
३८, उदयराज
उदयराज खरतगछीय माधु । मिश्रन्धु विनोद में इनके आश्रयदाता का नाम महाराजा रायसिंह लिखा : लगि भजन छत्तीसी में आश्रय दासा जोधपुर के महाराजा उदयसिंह सा स्पष्ट हाता है। श्री अगरचन्द नाहटा ने भी इसी मत को माना है ।
भजन छत्तीसी में कवि ने लिखा है कि उन्होंने इसे संवत् १६६७ में पूर्ण किया था जब वे ३६ वर्ष के भ । झावे. पिता का नाम भद्रसार, माता का नाम हरग, भ्राता का नाम गूरचन्द्र, पतिल का नाम पुरवाण, पुत्र का नाम सूदन और मित्र का नाम रत्नाकर था ।
१. मिश्रबन्धु विनोच प्रथम भाग पृष्ठ ३६५ २. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्यों की खोज भाग-२
परिशिष्ट । पृष्ठ १४२-४३ ३. सोलहसे सप्तसले कीध जन भजन छत्तीमी
* बरस छत्तोस हुष भनि प्राव ईसी ४. समपिता भवसार जनम समये हरषा उर।
समपि भ्रात सुरसाद मित्र समये रयगायर ।। समपि फलमि पूरबरिण, समपि पुत्र सुवन विवायर रूप प्रने अक्सार ओ मो समये प्रापज रहल उदराज वह लधो रतौ, भव मन समये मह महरा
भजन छत्तीसी पञ्च ३२