Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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वादिचन्द्र
थे। और वहीं पर रहते हुए उन्होंने भोपाल चरित को चौपई बन्ध छन्द में पूर्ण किया था।
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कवि की एक मात्र कृति श्रीपाल चरित की राजस्थान के ग्रंथ भण्डारों में कितनी ही पांडुलिपियां उपलब्ध होती हैं । पूरा काव्य २३०० चोपई छन्दों में निवद्ध है। यद्यपि श्रीपाल का जीवन कथा वोकप्रिय कथा है लेकिन कवि की वर्णन शैली बहुत ही अच्छी हैं जिसमे काव्य में चमत्कार छा गया है ।
काव्य की एक प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में संख्या १३६० ५र संग्रहीत है जिसमें १२५ पत्र है तथा जिसे संवत् १७९४ में पाटन में जंक्शन जोशी द्वारा लिपिबद्ध किया गया था।
२९. वादिचन्द्र
वादिचन्द्र विधानन्दि की परम्परा में होने वाले भ ज्ञानभूषण के प्रशिष्य एवं भ. प्रभाचन्द्र के शिष्य थे। इन्हें साहित्य निर्माण की रुचि गुरु परम्परा से प्राप्त हुई थीं । संस्कृत एवं हिन्दी गुजराती पर इनका अच्छा अधिकार था इसलिये इन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी दोनों में अपनी कलम चलायी। ये एक समर्थ साहित्यकार थे । संवत् १६४० में इन्होंने संस्कृत में बाल्हीक नगर में पार्श्वपुराण की रचना करके अपने कर्तृत्व शक्ति का परिचय दिया। ज्ञानसूर्योदय नाटक को संवत् १६४८३ एवं यशोधर नरिन को सवत् १६५७ में पूर्ण किया था। पवनदूत" कालीदास के मेघदूत के आधार पर रचा गया काव्य है ।
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गोत्रि गीरी ठाढो उत्तिम थान, सूरवीर यह रामाम । ता धारी चंदन चौधरी, कोरति सब जग में बिस्तरी ।। ६६ ।। जाति विरहिया गुलह गंभीर प्रति प्रताप कुल रंजन धीर ।
ता सुत रामदास परवान, ता सुत श्रस्ति महा सुर ग्यान ॥ ६७ ॥ तसु फुल मंडल हैं परिमल्ल, सबै आगरा में अरिमल्ल । तासु महिन बुद्धि नहि धान, कोयौ चोपई बंध प्रवीन ॥ ६८ ॥ शून्याब्धौ रसाब्जांके वर्षे पक्षे समुज्यसे । कार्तिक मास पंचयां बाल्हीके नगरे सुवा || पार्श्वपुराण
प्रशस्ति संग्रह-सम्पादक- डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल पृष्ठ १६ कलेश्वर-सुग्रामे श्री चिन्तामणिमन्विरे ।
सप्तमंत्र रसाब्ज के वर्ष कारि सुशास्त्रकम् ॥
पं. उदयपाल कासलीवाल द्वारा सम्पादित जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई द्वारा सन १९१४ में प्रकाशित