Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कल्याणकीर्ति
में निबर की है। चतुर्गतिवेलि इनकी अत्यधिक लोकग्निय रचना है । इस कृति का दूसरा नाम पंचमगीत वेलि भी मिलता है एक अन्य गुटके में इसका नाम छहलेस्था वेलि भी दिया हुआ है। इसकी रचना संवत १६५३ की है । नेमिराजुलगीत, नेमीश्वर गीत, मोरडा, कर्म हिन्डोलना, बीस तीर्थ कर जखडी, नेमिनाथ का बारहमासा, पाश्र्वनाथ छन्द प्रादि के नाम उल्लेखनीय है। कवि के शास्त्र भंडारों में सग्रहीत गुटकों में कितने ही पद भी मिलते हैं जिनका संग्रह कर प्रकाशन होना आवश्यक है। कवि की एक और रचना पनक्रिया रास मिली है जो इन्दरगढ़ (कोटा) के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है। रास का रचना काल संवत् १६८४ दिया हुआ है।
हर्षका विदेर म कहो . मिलता । लेकिन इनका चांदनपुर महावीर जी के संबंध में एक पद मिलता है इसलिये सम्भावना है कि इनका सम्बन्ध
आमेर गादी के भट्टारकों से था। "चहुँ गति वेलि" में इन्होंने अपने पापको मुनि लिखा है। इनकी रचनामें भक्ति परक एवं आध्यात्मिक दोनों ही तरह की है।
६. कल्याणकीति
कल्याणकीर्ति १७वीं शताब्दी के प्रमुख जैन सत देव कीति मगि के शिष्य थे । कल्याण कीति भीलोडा ग्राम के निवासी थे । वहा एक विशाल जैन मन्दिर था। जिसके बावन शियर थे और इन पर स्वर्ण धलश सुशोभित थे । मन्दिर के प्रांगण में एक विशाल मानस्तम्भ था। इसी मन्दिर में बैठकर कवि ने "चारुदत्त प्रबन्ध" की रचना की थी को संवत् १६६२ पासोज शुक्ला पंचमी को समाप्त हुई थी । कवि ने रचना का नाम "चारुदत्तरास" भी दिया है । इसकी एक प्रति जयपुर के दि. जैन मन्दिर पाटौदी के पाास्त्र भंडार में संग्रहीत है । प्रति संवत् १७३३ की लिखी
चारुदत्त राजानि पुन्यि भट्टारक सुखक र सुरखकर सोभागि प्रति विचक्षण बादिधारण केशरी भट्टारक श्री पद्मनंदिः चरण रज सेवि हारि ॥१०॥
ए' सह रे गछनायक परमि करि, देवकीरति मुनि निज गुरु मन्य धरी । धरि चित चरणे नमि "कल्याण कीरति' इमि भणि । चारुदत कुमर प्रबन्ध रचना रचिमि. प्रादर घणि ॥११॥
राय देश मध्यि रे भिलोडउ वंसि, निज रच नांसि रे हरिपुरिन हसी।
१. महारो रे मन मोरडात तो गिरनार्या उठि प्राय रे।
नेमिजी रस्यो यु कहिण्यो राजमती दुक्ख ये सौसे ॥ म्हारो