Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
कुछ लिखा है वह स्वयं के लिये हैं किन्तु दूसरे भी चाहें तो उससे कुछ शिक्षा ले सकते हैं
हा हा हासी जिन करें रे, करि करि हासी प्रानो रे । हीरो जनम नियरियो, बिना भजन भगवानौ रे ॥३७।। पढे गुण पर सरदहै रे, मन बच काय जो पी हारे । नीति गहे प्रति सुख लहै दुःख न व्यापे ताही रे ||३८।।
__ भाई नर भव पायौ मिनस्त्र को ।।
निज कारण उपदेश मेरे, कीयो बधि अनुसार रे कवियण कारण जिनधरो लीज्यो सब सुधारी रे ।
कवि का विस्तृत परिचय अकादमी के आगामी किसी भाग में दिया जावेगा। ४. पाणे रूपचन्द
पाण्डे कापचन्द १७वीं शतालिद के प्रसिद्ध अाध्यामिक विद्वान थे। कविपर बनारसीदास ने अद्ध कथानक में रूपचन्द नाम के चार व्यक्तियों का बल्लेख किया है। एक रूपचन्द्र के साथ वे अध्यात्म विषय पर चचा किया करते थे । दूसरे रूपचन्द से इन्होंने गोम्मटसार जीयकांड पढ़ा था । तीसरे रूपचन्द ने संस्कृाल में समवसरण पाठ की रचना की थी तथा चौथे रुपन्द ने नाटक समयसार की भाषा टीका लिखी थी। इन चारों में से दूसरे रूपचन्द ही पाण्डे रूपसन्द हैं। कविवर बनारसीदास ने उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया है तथा पाण्डे शब्द से अभिहित किया है | पांडे एक उपाधि है जो पंडित शब्द का ही बिगड़ा हा शब्द है । भट्टारकों के शिष्य पशिष्य पांडे उपाधि से समाप्त होते थे ।
रूपचन्द की अधिकांश रचना' प्रध्यात्मपरक है। उनकी कृतियों में परमार्थी दोहा शतक, गोत परमार्थी, मंगलगीत, नेमिनाथसस, खटोलना गीत के नाम उल्लेखनीय है। कवि का विस्तृत परिचय अकादमी के अगले किसी भाग में दिया जावेगा।
हर्षकीति
हर्षको ति १७वीं शताब्दि के चतुर्थ पाद के कवि थे। ये राजस्थानी संत थे। संथा भट्टारकों से प्रभावित थे। इन्होंने अपनी अधिकांश रचनायें राजस्थानी भाषा