Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कुभरपाल
बनारसीदास ने 'सूक्ति मुक्तावली" में कुबरपाल का नाम अपने अभिन्न मित्र के रूप में लिया है और दोनों ने मिलकर सूक्ति मुक्तावली भाग रचना की ऐसा उल्लेख किया है। कवि की अब तक करपाल बत्तीसी एवं सम्यकत्व बत्तीसी रचनामें उपलब्ध हो चुकी है।
कुमरपाल का जन्म प्रोसवाल वंण के चौरडिया गोश में हुआ था। कुमरपाल के पिता का नाम अमरसिंह था । नाथूराम प्रेमी - असिंह का जन्म स्थान जैसलमेर माना है। कुअरपाल के हाथ का लिखा हुा एक गुटका विक्रम संवत् १६८४-८५ का है जिसमें विभिन्न पाठों का सग्रह है। कुछ रचनायें स्वयं फाधि द्वारा निर्मित भी है। लेकिन उनका नामोल्लेख नहीं हुआ है। इसी तरह एक गुटका और मिला है जो स्वयं कुरपाल के पढ़ने के लिये लिखा हुया गया था। जिसमें कुपरपान द्वारा लिखी हुई समवित बत्तीसी का विषय अध्यात्मरस से है । इसका अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है
हुनौ उछाह सुजस आसम सुनि, उत्तम जिके परम रस भिन्ने । ज्य सुरही तिण चरहि दुध हुई , ग्याता नरह प्रन गुन गिन्ने ।। निजवुधि सार विचार अध्यातम, कवित बत्तीस भेट कवि किन्ने । कंवरपाल अमरेस 'तनू' भव, अतिहितचित सादर कर लिन्न ।
२५. सालिवाहन
सालिवाहन १७वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के कवि थे। इन्होंने संवत् १६६५ में आगरा में रहते हरिवश पुराण भाषा (पद्य) की रचना की थी। इनके पिता का नाम स्व रगसेन एवं गुरु का नाम भट्टारक जगभूपरण था । कवि भदावर प्रान्त के कञ्चनपुर नगर क निवासी थे । हरिवंश पुराण की प्रशस्ति में इन्होंने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
संवत् सोरहिस तहाँ भये तापरि अधिक पचानवे गये । माघ मास किसन पक्ष जानि, सोमवार सुभबार बखानि ।। भट्टारक जगभूषण देव गनघर. सागस बादि जु एइ । नगर नागिरो उत्तम थानु साहिजहाँ तपे दूजो भान ।।
बाहन करी चौपई बन्धु हीन बुधि मेरी मति अन्धु । २६. सुन्दरदास
गुन्दरदास नाम के जैन काव भी हुये हैं जो बागड प्रान्त के रहने वाले