Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(१५) राजनीति-शास्त्र का विधिवत् अध्ययन ईसा से सातवीं शताब्दी पूर्व से कम नहीं हो सकता।'
वर्तमान उपलब्ध राजनीति-प्रधान ग्रंथों में यद्यपि कौटिल्य का अर्थशास्त्र सबसे प्राचीन माना जाता है । कौटिल्य-अर्थशास्त्र, महाभारत, कामन्दकीय नीतिसार, तथा नीतिवाक्यामृत जैसे ग्रन्थों की टीकाओं में अनेक प्राचीन महाराजनीतिज्ञों के मतों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनकी रचनाएँ आज उपलब्ध नहीं हैं । वर्तमान उपलब्ध राजनैतिक वाङ्मय में कौटिल्य अर्थशास्त्र, मनुस्मृति, शुक्रनीतिसार, कामन्दकीय नीतिसार, याज्ञवलक्य स्मृति तथा नीतिवाक्यामृत प्रमुख ग्रन्थ हैं।
उपयुक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त बहुत-सा प्राचीन साहित्य है, जिसमें राजनीति के अनेक बहुमूल्य तत्त्व समाविष्ट हैं । इस कोटि में बौद्ध और जैन साहित्य को रखा जा सकता है । बौद्ध और जैन साहित्य में हालांकि शुद्ध राजनीति के तत्त्व समाविष्ट नहीं हैं, फिर भी यह साहित्य राजनीति सम्बन्धी अनेक विशेषताओं और सिद्धान्तों को लिए हुए है ।
बौद्ध धर्म आज से वर्षों पुराना है । बौद्ध ग्रन्थों में राजा के पद के सूत्रपात की जो कल्पनाएँ हैं, व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में दी हुई कल्पनाओं से बहुत कुछ मिलती हैं । बौद्ध ग्रन्थों में राजा की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार है :- समाज में चोरी का प्रवेश होने पर समाज के लोगों ने एकत्रित होकर प्रस्ताव रखा कि जो व्यक्ति दण्डनीय व्यक्ति को दण्ड दे सके, उपालम्भ के योग्य व्यक्ति को उपालम्भ कर सके, जिनका देश निर्वासिन करना है, उनको निर्वासित कर सके, बदले में लोगों ने उसे अपने धान्य का षष्ठांश भाग देने का निश्चय किया । तब उन्होंने अपने में से स्वरूपवान, शीलवान तथा शक्तिशाली व्यक्ति को अपना राजा चना। बड़े-बड़े लोगों की स्वीकृति प्राप्त होने के कारण वह “महासम्मत"
१. डॉ० एम० एल० शर्माः नीतिवाक्यामृत में राजनीति, दिल्ली : भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन १९७१. पृ० २...------