Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि नदी, जल, पर्वत, पत्थर - समूह, मरुस्थल तथा जंगल प्राकृतिक साधन थे । समराङ्गणसूत्रधार में नगरों की रक्षार्थं पांच प्रकार के कृत्रिम साधन वर्णित हैं । १. परिखा, २. वप्र, ३. प्राकार, ४. द्वार एवं गोपुर, ५. अट्टालक, ६. रथ्या ।
जैन पुराणों में भी इनका उल्लेख हुआ है ।
(1) परिखा
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आक्रामक शत्रु से बचने के लिए परिखा का निर्माण किया जाता था । भारत के सभी प्रसिद्ध नगरों में दुर्गों के चतुर्दिक परिखा के विद्यमान होने की सूचना मिलती है । नगर की चाहरदीवारी के बाहर उसी से लगी हुई, पानी और जलचर जीवों से युक्त परिखा (खाई) होती थी। खाई इतनी गहरी और चौड़ी होती थी कि आक्रमण के समय शत्रु के लिए वह बाधक सिद्ध होती । राजगृह नगर की परिखा उसे समुद्र के समान घेरे हुई थी ।' नगरों के अतिरिक्त मंदिरों के चारों ओर की सुरक्षा की दृष्टि से परिखाओं की व्यवस्था की गई थी। महापुराण के अनुसार तीन प्रकार की परिखाओं का उल्लेख है । १. जल, २. पंक तथा ३. रिक्त परिखायें होती थीं ।
जैनेत्तर ग्रन्थ अर्थशास्त्र में भी तीन प्रकार की परिखाओं जलपरिखा, पंक परीक्षा तथा रिक्तपरिखा का उल्लेख है । परिखाओं की मज़बूती के लिए परिखा के अन्दर और नीचे ईंटों या पत्थरों की चिनाई की जाती थी । मेगस्थनीज़ के अनुसार पाटलि की परिखा ६०० फुट चौड़ी थी । जैनेत्तर ग्रन्थ अर्थशास्त्र में पहली परिखा १४ दण्ड, दूसरी
१. अर्थशास्त्र - २ / ३
७७ २. जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन पृ० ३२३.
३. पद्म पुराण २/४६.
४. पद्म पु० ४० / २६.
५. महा पु० १६ / ५३. ६. अर्थ आस्था - २ / ३, पृ० ७७