Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust

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Page 211
________________ ( १९७) मण्डल सिद्धान्त के मूल तत्त्व : राज्य मण्डल के अन्तर्गत विजिगीषु अर्थात विजयाकांक्षी के संदर्भ निम्नलिखित प्रकार के राज्यों की कल्पना की गई है : १. विजिगीषु अर्थात् विजयाकांक्षी २. अरि अर्थात् आसन्न विपक्षी ३. मित्र अर्थात् आक्रामक का पक्षधर, ४. अरि मित्र अर्थात् विपक्षी का मित्र ५. मित्र-मित्र अर्थात् आक्रामक के मित्र का मित्र ६. अरि-मित्र-मित्र अर्थात् विपक्षी के मित्र का मित्र, ७. पाणिग्राह अर्थात् पृष्ठदेशीय विपक्षी, ८. आक्रन्द अर्थात् पृष्ठदेशीय मित्र, ६. पाणिग्राहासार अर्थात् पृष्ठदेशीय विपक्षी का मित्र, १०. आक्रन्दासार अर्थात् पृष्ठदेशीय मित्र का मित्र, ११. मध्यम अर्थात् विजिगीषु तथा अरि के बीच संधि या विग्रह कराने में समर्थ, १२. उदासीन अर्थात् विजिगीषु, अरि तथा मध्यम तीनों से शक्ति शाली और उनके बीच सन्धि या विग्रह कराने में समर्थ । ___ मनुस्मृति में कहा गया है कि जो राजा अधिक उत्साह, गुण एवं प्रकृति से समर्थ तथा विजयाभिलाषी हो, वह राजा विजिगीष है। कौटिल्य द्वारा वर्णित मण्डल सिद्धान्त के तत्त्व को मनु ने भी स्वीकार किया है, और कहा है कि राजमण्डल की चार (मध्यम, विजिगीषु, उदासीन और शत्र) मूल प्रकृतियां हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर राजमण्डल की १२ (कौटिल्य की भांति) प्रकृतियाँ हैं । १. को० अर्थ० ६.२. २. मनु ७/१५५. ३. मनु ७/१५६. -

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