Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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( १६९) तथा शत्र राजा उसको हानि न पहुंचा सके । और न उससे अधिक शक्तिशाली हो सके। परराष्ट्र नीति :
विजिगीषु राजा के लिए केवल युद्ध ही एक मात्र हल नहीं था अपितु बागुण्य नीति की सहायता से वह उसे हल करने की कोशिश करता था । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को विनियमित करने वाला यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है । "मण्डल सिद्धान्त” के अन्तर्गत विजिगीषु को अपने सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार इन छह गुणों अथवा नीतियों का प्रयोग करना चाहिए । इनके प्रयोग से राज्यों के पारस्परिक सम्बन्ध निश्चित होते हैं। इनका यथोचित पालन करके राजा सफलता के शिखिर पर आरूढ़ होता है। महापुराण के अनुसार सन्धि, विग्रह, आसन, यान, संचय और द्वैधीभाव के छह गुण हैं। आचार्य सोमदेव ने भी इसी प्रकार के छह गुण बतलाये हैं। १. सन्धि :
युद्धरत दो राजाओं में किसी कारण से मैत्रीभाव हो जाना सन्धि कहलाती है। जब शत्र राजा का बल समान हो और उसके साथ सन्धि सम्बन्ध के अलावा अन्य कोई नीति का अनुगमन से उसे अपने राज्य की वृद्धि न होकर क्षय होने की शंका हो तो उससे सन्धि कर लेनी चाहिए। जैन मान्यतानुसार सन्धि दो प्रकार की होती हैं। " (१) सावधि सधि-निश्चित कालीन मित्रता को सावधि संधि कहते हैं। (२) अवधि रहित संधि-यह वह संधि हैं जिसमें समय और सीमा का प्रतिबन्ध नहीं रहता है।
१. कामन्दक १५, ३२ २. सन्धिः विग्रहो नेतुरासनं यानसंज्ञयो।
द्वैधीभावश्च षट् प्रोक्ता गुणाः प्रणमिनः श्रियः ॥ महा पु० ६८/६६-६७ ३. नीतिवाक्यामृत में राजनीति पृ० १६३. ४. कृत विग्रहयोः पश्चात्केनचिद्वतुना तयोः ।
मैत्रीभावः स सन्धि स्थात्सावधि विगतावधि ॥ महा पु० ६८/६७-६८.