Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(२००) जैनेत्तर ग्रंथों रामायण में चार प्रकार की संधियों का उल्लेख मिलता है।'
(१) चर संधि :- संधि यदि इस उद्देश्य से की जाये जिससे राज्य को अपनी शक्ति बढ़ाने का समय मिल जाये और उसके पश्चात संधि सम्बन्ध तोड़कर शत्रु पर आक्रमण कर सके, ऐसी संधि को 'चर संधि" कहते हैं।
(२) स्थावर संधि :-जब संधि स्थाई रूप से दोनों देशों में मित्रता स्थापित करने के उद्देश्य से होती थी, तो वह स्थावर संधि कही जाती थी।
(३) समसंधि :-जब संधि करने वाले दोनों राज्य एक से ही लाभ के उद्देश्य से मैत्री करते हैं तो वह सम संधि कहलाती थी।
(४) विषम संधि :-जब भिन्न-भिन्न लाभ की शर्त पर संधि की जाती थी वह विषम संधि कहलाती थी।
कौटिल्य ने अपने अर्थ-शास्त्र में अमिष, पुरुषान्तर, आत्मरक्ष, अदृष्ट पुरुष, दण्डमुख्यात्मरक्षण, दण्डोपनत, परिक्रम, उपग्रह, प्रत्यय, सुवर्ण, कथाल आदि संधियों का उल्लेख किया है।'
२. विग्रह :
जब विभिन्न राज्यों के बीच द्रोह, वैर, वैमनस्य की स्थिति होती है, तब वह विग्रह की स्थिति होती है। महापुराण में बताया है कि शत्रु तथा उसे जीतने वाला दूसरा विजयी राजा दोनों ही परस्पर एक दूसरे का जो उपकार करते हैं, उसे विग्रह कहा गया है। कौटिल्य के अनुसार भी शत्र
१. रामायण कालीन युद्ध कला पृ० २६७. २. कौ० अर्थशास्त्र ७/३ ३. परस्परापकारोरिविजिगीष्वोः स विग्रहः । महा पु० ६८/६८, पद्म पु०३७/३.