Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust

View full book text
Previous | Next

Page 226
________________ के विषय में कहा गया है कि मंत्री का पद वंश परम्परागत और चनाव दोनों ही आधार पर होता था। हिन्दू पुराणों में सिर्फ वंशपरम्परागत बताया गया है । जैन पुराणों के अनुसार राजा मंत्रियों की नियुक्ति करने में स्वतंत्र होता था। राजा प्रधानमंत्री को नियुक्ति करने से पूर्व परीक्षा लेता था, जो व्यक्ति परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता, उसे ही प्रधान मंत्री बनाया जाता था। इसके अलावा अन्य मंत्री होते थे। जैन पुराणों में मंत्रियों की योग्यता के विषय में कहा गया है कि मंत्रियों का स्वदेशी होना आवश्यक नहीं है । अर्थात् दूसरे देश का व्यक्ति भी मंत्री पद पर आरूढ़ हो सकता है । मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या के विषय में बताया गया है कि सामान्यतः मंत्री-मण्डल के सदस्यों की संख्या निम्नतम चार एवं अधिकतम सात होती थी। मंत्री-मण्डल के अलावा भो मंत्री होते थे जिनकी संख्या निश्चित नहीं होती थी। मंत्री-मण्डल के कार्यों के अन्तर्गत बताया गया है कि मंत्री राजा की इच्छा एवं कार्यों की पूर्ति करने के लिए समयानुसार वेश-परिवर्तन, स्वरूप परिवर्तन कर लेते थे, जिससे कोई उन्हें पहचान नहीं सके। इसके अतिरिक्त राजा की अत्यन्त विकट परिस्थितियों में रक्षा भी करते थे। मंत्री राजकन्या के चयनार्थ परामर्श भी देते थे । कभी-कभी ऐसा भी होता था कि राजा मंत्री को झूठ मूठ सभासदों के सामने अपमानित कर राज्य से निकाल देते थे। ऐसी परिस्थिति में वह मंत्री विपक्षी राजा से मिलकर उसका विश्वासपात्र बनकर उसे पराजित करके ही वापिस लौटता था। जैन पुराणों में यह भी बताया गया है कि भविष्य में हितकारक कार्य के लिए दुःख देना उत्तम है। जैन मान्यतानुसार प्राचीन समय में लोग युद्धों से बहुत ही भयभीत रहते थे। पहले यथासम्भव साम, दाम, दण्ड और भेद नीति अपनायी न जाती थी। यदि इनके द्वारा सफलता प्राप्त नही होती, तभी युद्ध लड़े जाते थे। भरत-बाहुबलि युद्ध इसका साक्षात् उदाहरण है। इस युद्ध से पूर्व दोनों भाइयों में दूतों द्वारा वार्तालाप हुआ लेकिन जब कुछ नतीजा नहीं निकला तब दोनों ने युद्ध करने का निर्णय लिया। निरपराध प्राणियों के वध से बचने के लिए तथा उन्हें अभयदान देने के लिए दोनों ने आपस में हो युद्ध करने का निश्चय किया था। इन दोनों में दुष्टि-युद्ध, बाहु-युद्ध, जल-युद्ध और मुष्ठि-युद्ध हुआ था। कहाँ

Loading...

Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248