Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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भरत-बाहबलि युद्ध दोनों में कितना अन्तर है। इस अन्तर का मूल कारण अहिंसा की विचारणा ही है। जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है। उसमें बताया गया है कि जहां तक हिंसा से बचा जा सके बचना चाहिए, जब कोई उपाय नजर नहीं आये, तभी हिंसक प्रवृत्तियों का सहारा लेना चाहिए। भरत, बाहुबलि का युद्ध यह आदर्श शासन और राजनैतिक व्यवहार का आदर्श था। जिससे यह विदित होता है कि हिंसा के स्थान पर अहिंसा भाव से भी युद्ध किया जा सकता है। राजनीतिक सिद्धान्त व्यवहार में वास्तविक परिस्थितियों के दबाव में इतना मूर्त नहीं होता है, यह अलग बात है। जैन पुराणों में हिंसक युद्धों का भी वर्णन आता है। लेकिन युद्ध करने के पश्चात् राजा उसका प्रायश्चित कर लेते थे, जिससे कि उन्हें हिंसा का इतना दोष नहीं लगता था जितना कि प्रायश्चित नहीं करने पर लगता है। जव अहिंसा की भावना व्यक्ति के हृदय में घर कर जाती है, वहां मैत्री-भाव स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है। प्रत्येक जीव के प्रति मैत्री-भाव रखना एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक, प्रत्येक जीव में अपनी ही जैसी आत्मा के दर्शन करना, प्रत्येक जीव अपने ही समान जीना चाहता है, मरने की इच्छा कोई नहीं करता, इसलिए जैन पुराण साहित्य में अहिंसा पर अधिक बल दिया गया है।
जैन पुराणों में अहिंसा पर बल दिया गया है लेकिन इसका यह मतलब नहीं बताया कि शासन चलाने में दण्ड-शक्ति का सर्वथा उपयोग नहीं करना चाहिए । व्यापक और दीर्घकालीन दृष्टि से दण्ड और हिंसा का उपयोग जरूरी भी हो जाता है। मगर उस संदर्भ में संयम और विवेक से हिंसा या बल का उपयोग होता था, ऐसा अभिप्रेत था।
___ अन्त में हम यही कहेंगे कि जैनपुराणों के अनुशीलन से तत्कालीन राजनीति का पता चलता है। रचना काल ज्ञात होने से ये प्रामाणिक माने जाते हैं, और उस समय की प्राप्त सामग्रियों के आधार पर भारतीय राजनीति का चित्र उपस्थित होता है।