Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust

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Page 222
________________ (२०८) चतुर्थ अध्याय के द्वितीय भाग में राजा का वर्णन किया गया है। इसमें प्रथम राजा का महत्त्व एवं चक्रवर्ती राजा के चौदह रत्न, नवनिधियों का वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् राजा की उत्पत्ति के सिद्धान्तों का दिगदर्शन किया है। राजा को उत्पत्ति किस प्रकार हुई. इस सम्बन्ध में भारतीय विचारकों के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है । (१) वैदिक सिद्धान्त, (२) सामाजिक अनुबन्ध का सिद्धान्त (३) दैवीय सिद्धान्त । राजा की उत्पत्ति के पश्चात् राज्याभिषेक का वर्णन किया गया है। उसमें बताया गया है कि प्राचीन समय में किस प्रकार राजा का राज्याभिषेक किया जाता था । राज्याभिषेक के बाद युवराज तथा उसके उत्तराधिकारी का वर्णन किया गया है, जिसके अन्तर्गत सापेक्ष और निरपेक्ष दो प्रकार के राजाओं का उल्लेख आता है। सापेक्ष का अर्थ हैराजा अपने जीवनकाल में ही अपने ज्येष्ठ पुत्र को युवराज पद दे देता था। निरपेक्ष राजा के विषय में यह बताया गया है कि राजा की मृत्यु के बाद ही पुत्र को राजा बनाया जाता था। युवराज तथा उत्तराधिकारी का पद वंश परम्परागत होता था। इसके अलावा राजा के प्रधान पुरुषों का वर्णन किया गया है, जिसके अन्तर्गत राजा, युवराज, अमात्य और पुरोहित आते हैं। इसके साथ ही राजा की उपाधियाँ, राजा के प्रकार, राजा के गुण, प्रजा तथा राजा का सम्बन्ध, राजा के कार्य आदि के बारे में चर्चा की गई है। पंचम अध्याय : “शासन व्यवस्था" इस अध्याय को तीन भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग में मंत्रिपरिषद, द्वितीय भाग में कोष तथा तृतीय भाग में सेना या बल का वर्णन किया गया है। प्रथम भाग मंत्रिपरिषद के अन्तर्गत मंत्रिपरिषद की रचना, मंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रियों की योग्यता, मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या, मंत्रिपरिषद के कार्य आदि का वर्णन किया गया है।

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