Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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उपहार भेजा करते थे जिसका स्वीकार करके राजा बहुत ही प्रसन्न होते थे ।'
तत्कालीन समय में भारत का सम्बन्ध अन्य देशों से पहले व्यापार द्वारा हुआ था । रामायण में सुवर्णद्वीप का उल्लेख सबसे पूर्व व्यापार के सिलसिले में ही आया है ।" जैन मान्यतानुसार वणिक लोग मूलधन की रक्षा करते हुए धनोपार्जन करते थे । कुछ लोग एक जगह दुकान लगाकर व्यापार करते, और कुछ बिना दूकान के घूम-फिरकर व्यापार करते थे । ' आन्तर्देशिक व्यापार होता था जिसके अन्तर्गत बहुत सी वस्तुओं का विनिमय होता था । उस समय में विदेशों से भी व्यापारिक सम्बन्ध होने के प्रमाण मिलते हैं । यह व्यापार नौका तथा जहाजों द्वारा होते थे। नदियों के द्वारा जो व्यापार होता था वह नौका की सहायता से होता था तथा समुद्र द्वारा जो व्यापार होता था वह जहाजों के द्वारा होता था । यथाचम्पानगरी में मांकदी नाम का एक सार्थवाह रहता था। उसके जिनपालित और जिनरक्षित नाम के दो पुत्र थे । उन्होंने बारहवीं बार लवण समुद्र की यात्रा की । लेकिन इस बार उनका जहाज फट गया और वे रत्नद्वीप में पहुँच गये ।' भरत चक्रवर्ती की दिग्विजय के अवसर पर उनका चर्मरत्न नाव के रूप में परिणत हो गया और उस पर सवार होकर उन्होंने सिंधुनदी को पार करते हुए, सिंहल, बर्बर, यवनद्वीप, अरब, एलैक्जेन्ड्रा आदि देशों की यात्रा की । "
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रामायण काल में भारत का भौगोलिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध पश्चिमी एशिया, यूनान, रोम, मध्य एशिया, चीन, पूर्वीद्वीपसमूह,
१. त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र भाग १०, पृ० १३३ - १३५.
२. रामायण कालीन युद्धकला पृ० २६२.
३. निशीथचूर्णी ११.३५ ३२
४. निशीयभाष्य १६, ५७५०
५. ज्ञाताधर्मकथांग ६, पृ० ३२९-३३०.
६. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० १८३.