Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust

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Page 203
________________ ( १९९) जाता थां।' इसके अन्तर्गत ही मुहर तोड़कर पत्र पढ़ने का उल्लेख उपलब्ध है । राजा अपने विरोधी राज्य में दूत भेजते थे, तथा वहां पहुंचकर नीति-विषयक बात करना दूत का कर्तव्य था। पद्मपुराण में वर्णित है कि अन्य देश के राजा से उसको वार्ता में अपने स्वामी के कथन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कहता था। आचार्य सोमदेव ने भी दूत के कार्यों पर प्रकाश डाला है । उनके अनुसार दूत के निम्नलिखित कार्य हैं : नैतिक उपाय द्वारा शत्र के सैनिक संगठन को नष्ट करना। राजनीतिक उपायों द्वारा शत्रु को दुर्बल बनाना तथा शत्रु विरोधी पुरुषों को साम-दामादि उपायो द्वारा वश में करना । शत्रु के पुत्र, कुटुम्बी व कारागार में बन्दी मनुष्यों को द्रव्य-दान द्वारा भेद जानना। शत्रु द्वारा अपने देश में भेजे हुए गुप्त पुरुषों का ज्ञान प्राप्त करना। सीमाधिपति, आटविक, कोश, देश, सैन्य और मित्रों की परीक्षा करना। शत्रु राजा के यहां विद्यमान कन्या रत्न तथा हाथी, घोड़े आदि वाहनों को अपने स्वामी को प्राप्त कराना । शत्रु के मंत्री तथा सेनाध्यक्ष आदि में गुप्तचरों के प्रयोग द्वारा क्षोभ उत्पन्न करना। ये दूत के कार्य हैं।' उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त दूत का यह भी कर्तव्य होता था कि वह शत्रु के मंत्री, पुरोहित और सेनापति के समीपवर्ती पुरुषों को धनादि देकर अपने पक्ष में करके उनसे शत्रु हृदय की गुप्त बात एवं उसके कोश, १. महा पु० ६८/२५१. २. महा पु० ६८/३६६. ३. वही ३५/६२, ६८/४०८, पद्म पु० १६/५५-५६. ४. पद्म पु० ८/१८८ हृदयस्थाने नाधने पिशाचेनैव चोदिताः । दूतावाचि प्रवर्तन्ते यन्त्रदेहि वावशाः ॥ ५. नीतिवाक्यामृतम् १३/८ १० ७०. .

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